कुछ नहीं करना ही ध्यान होता है

एक बार एक राजा एक मठ को देखने गया। मठ बहुत सुंदर था। राजा ने मठ में जाकर वहां प्रमुख सन्यासी से कहा कि मुझे पूरा मठ दिखाओं, जहां-जहां आप जो जो करते हैं। सब दिखाओ व बताओ।
सन्यासी राजा को मठ दिखाने लगा। सन्यासी ने राजा को पूरा मठ घुमाया। सन्यासियों के रहने का स्थान, उनके स्नान गृह, बगाीचे सबकुछ दिखाया। साथ ही बताया कि कौन से स्थल पर सन्यासी क्या करते हैं।
मठ के बीचों-बीच एक सुंदर गोल गुंबद की इमारत बनी थी। बेहद आकर्षक व दर्शनीय। सन्यासी राजा को यहां लेकर नहीं गयां। वास्तव मंे राजा देखना उसी ईमारत को चाहता था।
राजा ने सन्यासी से कहा कि जो मैं देखने आया हूं उसे तो आपने मुझे अभी तक दिखाया ही नहीं। वो जो बीचों-बीच सुंदर ईमारत बनी है, उसे दिखाओ।
सन्यासी ने राजा से कहा कि आपने कहा कि आप मुझे वो सब स्थान दिखाओ, जहां आप कुछ भी करते हैं। जिस ईमारत की बात आप कर रहे हैं, वहां हम कुछ भी नहीं करते, इसलिए मैं आप क्या बताऊ़ंगा कि यहां हम क्या करते हैं।
दरअसल जब हमें कुछ भी नहीं करना होता, तब हम यहां आते हैं।
यह वास्तव में हमारा ध्यान स्थल है।
कुछ भी नहीं करना ही ध्यान है। पूर्ण विश्राम की अवस्था ध्यान है।
राजा को ध्यान का अर्थ समझ आ गया।

आपका दिन शुभ हो!!!!!

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