महात्मा कबीर वाणी
जिस प्रकार हीरे की गुणवत्ता को जौहरी ही परख सकता है। उसी प्रकार वस्तु या व्यक्ति के गुणों को पारखी ही समझ सकता है।
गुणों को समझने के लिए भी गुणी होना जरुरी है। हर पीली वस्तु सोना नहीं होती है और काली हो जाने से चांदी लोहा नहीं हो जाती।
महात्मा कबीर का एक अति सुंदर दोहा है-
कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।
बगुला भेद न जानई, हसां चुनी-चुनी खाई।।
अर्थात समुंद की लहरों से मोती आकर बिखर गए। बगुला को मोती का भेद नहीं पता चला। लेकिन हंस ने चुन-चुन कर मोती खाए। परख का गुण ना होने के कारण बगुला ने मोती नहीं खाए और हंस ने मोती चुन लिए।