स्वामी सत्यपति के सम्मान उनके पैतृक गांव फरमाणा में हुई श्रद्धाजंलि सभा
- 94 साल पहले फरमाणा में मुस्लिम परिवार में जन्में थे सत्यपति
‘इंसान की खुशबू रहती यहां, इंसान बदलते रहते हैं। दरबार लगा रहता यहां, दरबान बदलते रहते हैं।’
इस गीत के साथ आज गांव फरमाणा में स्वामी सत्यपति जी की खुशबू की महसूस किया गया। 94 साल पहले इस गांव में मुस्लिम परिवार में जन्मे मुंशीखान को आज दुनिया योग एवं दर्शन के प्रकांड विद्वान स्वामी सत्यपति के रूप में जानती हैं और जानती रहेगी। उनके सम्मान में रविवार को उनके पैतृक गांव फरमाणा में श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन किया गया। स्वामी सत्यपति का देहांत गत गुरुवार को उनके वानप्रस्थ सन्यासी आश्रम रोजड़, गुजरात में हो गया था।
श्रद्धाजंलि सभा में गांव के गणमान्य ग्रामीणों के अतिरिक्त आसपास के गांव के आर्यसमाज के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। मुख्य संबोधन आर्यप्रतिनिधि सभा नई दिल्ली के अध्यक्ष स्वामी आर्यवेश जी का रहा। अध्यक्षता नफे सिंह आर्य ने की।
स्वामी आर्यवेश जी ने बताया कि स्वामी सत्यपति जी ने सात अप्रैल 1970 को दयानंद मठ में स्वामी अग्रिवेश तथा स्वामी इंद्रवेश के साथ दीक्षा ग्रहण की थी। स्वामी सत्यपति का जाना एक राष्ट्रीय क्षति है। उनके द्वारा स्थापित योग व दर्शन के सिद्धांत युगों युगों तक मानव जाति का मार्गदर्शन करते रहेंगे। सार्वदेशिक आर्य युवक परिषद हरियाणा के अध्यक्ष स्वामी दीक्षेंद्र आर्य ने कहा कि योग व दर्शन के अध्ययन, प्रचार व प्रसार के क्षेत्र स्वामी सत्यपति का अतुलनीय योगदान है। गुजरात में स्थापित योग व दर्शन महाविद्यालय उनके द्वारा किया अति महान कार्य है।
बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं अभियान की संयोजक प्रवेश आर्या ने इस अवसर पर कहा कि स्वामी सत्यपति के जन्मदिवस को प्रेरणा दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ियां उनसे प्रेरणा ले सकें। इस अवसर पर किए गए हवन यज्ञ का संचालन रोहताश आर्य ने किया। सभा का संचालन डा. राजेश आर्य ने किया।
इस अवसर पर सत्येंद्र साहरण, सुभाष सरपंच, धर्मबीर आर्य, सतबीर आर्य, अजंलि आर्य, मोनिका आर्य, राजबीर, महाबीर व मनोज पहलवान आदि भी उपस्थित रहे।
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