दान करता तो नज़रे झुका लेता
कहते हैं, एक राजा बड़ा दानवीर था। वह बहुत अधिक दान करता था और दान करते समय अपनी नज़रे नीचे कर लेता था।
उस समय के एक संत जब यह सुना उसने राजा से कुछ यूं पूछा,
”ऐसी देनी देन जु,
कित सीखे हो सेन।
ज्यों ज्यों कर ऊँचौ करौ,
त्यों त्यों नीचे नैन।।”
अर्थार्त हे! राजन! तुम ऐसा दान देना कहाँ से सीखे हो? जैसे जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते हैं वैसे वैसे तुम्हारी नज़रें तुम्हारे नैन नीचे क्यूँ झुक जाते हैं?
राजा ने इसके बदले जो जवाब दिया वो ये था,
”देनहार कोई और है,
भेजत जो दिन रैन।
लोग भरम हम पर करैं,
तासौं नीचे नैन।।”
अर्थार्त देने वाला तो कोई और है वो ही मालिक है वो परमात्मा है वो दिन रात भेज रहा है। परन्तु लोग ये समझते हैं कि मैं दे रहा हूँ। राजा दे रहा है। ये सोच कर मुझे शर्म आ जाती है और मेरी आँखें नीचे झुक जाती हैं।
आपका दिन शुभ हो!!!!!
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