भराण में बना गुगापीर का मंदिर

कुश्ती दंगल और खेल प्रतियोगिताएं भी होंगी

सैकड़ों साल पुरानी है महम के मेले की परंपरा
भराण व खरकड़ा में लगने लगे हैं नए मेले
महम

एक तरफ हम अपनी सांस्कृतिक विरासतों को लगातार खोते जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ महम इन विरासतों को फिर से सहजने में लगा है। खासकर महम के ऐतिहासिक मेलों की रौनक आज भी इस क्षेत्र में बिखरती है। खास बात यह है कि न केवल पुराने ऐतिहासिक मेले आज भी लगते हैं, बल्कि नए मेले भी आरंभ हो गए हैं। नए मेलों की रौनक पुराने मेलों से भी ज्यादा दिखती हैं
आज गुगानवमीं के दिन महम में मेंलों की धूम रहेगी। दस किलोमीटर से भी कम के दायरे में एक दिन तीन मेले लगेंगे। ये मेले भराण, महम व खरकड़ा में लगेंगे।

गांव भराण के गुगापीर मेले का दृश्य (फाइल फोटो)

नया आरंभ हुआ है भराण का मेला
गांव भराण में गुगानवमीं के मेले का महत्व इतना अधिक है कि गांव का शायद ही कोई घर बचे, जो इस दिन मेले ना आता हो। भराण के ग्रामीणों ने गुगामेड़ी की तर्ज पर गांव में गुगापीर मंदिर बनाया है। लगभग डेढ़ दशक से यहां मेला लग रहा है। कुश्तियों का दंगल हो रहा है। खास बात यह है कि यह एक अत्यंत व्यवस्थित एवं आधुनिक तरीके से लगने वाला मेला है। भंडारा भी यहां लगता है।
आरंभ से ही मेला प्रबंधन में अग्रणी भूमिका निभा रहे सेवानिवृत कार्यकारी अभियंता हवा सिंह ने बताया कि गत वर्ष कोरोना की वजह से मेला नहीं लग पाया था। इस बार मेले की तैयारी पूरी है। उन्होंने बताया कि इस दिन गांव के हर घर से ग्रामीण मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आते हैं। मेला परिसर लगातार सुंदर बनाया जा रहा है। काफी संख्या में यहां दुकानें सजती हैं।

महम के मेलों में होते हैं खेल आयोजन (फाइल फोटो)

1994 में बनाया गया खरकड़ा में गुगापीर मंदिर
गांव खरकड़ा में लगने वाला गुगा नवमीं का मेला भी ज्यादा पुराना नहीं है। लगभग तीन दशक पहले ही यह मेला लगना आरंभ हुआ है। निवर्तमान सरपंच अभिमन्यु ने बताया कि इस स्थल की पूजा अर्चना तो सैंकड़ों साल से हो रही है। यहां एक छोटी सी जोहड़ी हैं। इसे गुगा आली जोहड़ी ही कहा जाता है। पहले यहां एक छोटी सी मंढी थी। 1994 में मंदिर बनाया गया। तब से यहां मेला लगता है। हर घर से ग्रामीण पूजा अर्चना के लिए आते हैं। गांव के कहीं दूर रहने वाले ग्रामीण भी इस दिन मंदिर पर पहुंचते हैं। दुकानें सजती है। गीत-भजन होते हैं। कोरोना के कारण गत वर्ष यहां भी मेला नहीं लग पाया था।

मेंलों में लगते हैं भंडारे (फाइल फोटो)

प्रसिद्ध रहा है महम की खांड की मंडी में लगने वाला मेला
महम में लगने वाला जन्माष्टमी का मेला प्रदेश भर में प्रसिद्ध था। वर्तमान समय में जहां सनातन धर्म रामलीला होती है, खांड की मंडी वाले मंदिर के सामने प्राचीन मेला स्थल है। इस मेले के बारे में कहा जाता है कि यहां दूर-दूर से दुकानदार आकर दुकाने सजाते थे। कुश्तियों के दंगल के अतिरिक्त पंतगबाजी भी होती थी।
खांड की मंडी मंदिर के पुजारी बजरंग शर्मा ने बताया कि यहां लाठी के खेल का भी शानदार प्रदर्शन होता था। उनके दादा तथा इस मंदिर के पूर्व पुजारी पंडित खुशीराम इस खेल के बड़े उस्ताद थे।
हालांकि अब भी यह मेला लगता है, लेकिन पहले जैसी रौनक नहंी है। पहला जैसा खुला मैदान भी नहीं रहा है। पतंगबाजी तो इतिहास बन चुकी है। कुश्तियां भी पहले की तरह नहीं होती। कोरोना की वजह से गत वर्ष यह मेला भी नहीं लगा था।
अच्छी बात यह है कि बदलते परिवेश में भी महम के ग्रामीण अंचल में हरियाणा की मूल संस्कृति कायम है। भराण और खरकड़ा के मेले इस बात के सबृत है कि गांव अभी भी अपनी मिट्टी से कटे नहीं हैं। जरूरत है बस अपनी संस्कृति को सहजने के लिए कदम उठाने की।24c न्यूज/ इंदु दहिया 8053257789

सभी फोटो मंजीत राठी भराण ने उपलब्ध करवाए है

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