बहन को भाई ने बेटी के साथ छूछक भी दिया
पूरे गांव के साथ, पड़ोसी गांव का भी हुआ प्रतिभोज
बेटियों के बिना घर आंगन सूना
गांव में हो रही है प्रशंसा
नि:संतान दंपति द्वारा बच्चों का गोद लेना सामान्य व्यवस्था है। लेकिन जब बच्चा भी हो और वो भी बेटा। तब केवल इसलिए बेटी गोद ले ली जाए कि परिवार की तीसरी पीढ़ी में बेटी नहीं है, तो यह सोच सामान्य से अलग हटकर स्थापित होती है।
ये सोच स्थापित हुई है गांव फरमाणा में। किसी और ने नहीं, गांव फरमाणा खास की सरंपच पूनम के परिवार ने ये मिसाल पेश की है।
पूनम की जेठानी बबीता तथा जेठ दीपक ने बताया कि के परिवार की नई पीढ़ी में बेटी नहीं थी। परिवार का मानना है कि बेटी के बिना घर आंगन सूना होता है। बेटियों के भाग से ही घर फलता-फूलता है, इसलिए बेटी का होना जरुरी है।

बहन को दी, बेटी भी और छूछक भी
बबीता को बबीता के भाई जिला सोनीपत के गांव गंगाना निवासी भूपेंद्र ने अपनी बेटी गोद दे दी है। यह पहले ही तय हो चुका था कि भूपेंद्र की पत्नी रविता को यदि बेटी हुई तो वह बबीता और दीपक को गोद दे देगी।
बेटी का नाम रखा गया है कृषा। कृषा सवा महीनें की हो गई है। भूपेंद्र अपनी बहन के घर के कृषा के जन्मोत्सव का छूछक लेकर आए। इसी अवसर पर गांव की दोनों पंचायतों और पड़ोसी गांव बेडवा में भी प्रतिभोज का आमंत्रण दिया गया।

पहली दो पीढ़ियों में हैं बेटियां
दीपक ने बताया कि उसके पिता दो भाई हैं। उनकी चार बहनें हैं। वे खुद भी दो भाई हैं और उनकी तीन बहनें हैं। अब उनके भाई सुखदीपतथा उसकी पत्नी पूनम को भी दो बेटे हैं और उनको भी एक बेटा है। इस पीढ़ी में उनके आंगन में बेटी नहीं है, इसलिए बेटी को गोद लिया है। दीपक और बबीता का कहना है कि भाइयों की बहन जरुरी है। बहन, भाई की सबसे बड़ी हितैषी होती है।
हो रही है प्रशंसा
गांव की सरपंच पूनम के परिवार के इस कदम की गांव में प्रशंसा हो रही है। ग्रामीणों का कहना है कि भारतीय संस्कृति में बेटियों के बिना घर सूना माना जाता है। सरपंच ने यह एक मिसाल पेश की है। ग्रामीणों को इससे प्रेरणा मिलेगी।
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