आज भी चाक पर बना रहे मिट्टी के बर्तन और बच्चों के लिए खिलौने

24सी न्यूज,सहयोगी, सोहन फरमाना

पीढ़ी दर पीढ़ी बनाते आ रहे हैं मिट्टी के छोटे-बड़े मटके, हुक्के की चिलम, दीये, करवे, अहोई व्रत के लिए छोटी मटकी और बच्चों के लिए खिलौने। लेकिन चाइनीज सामान के चलते यह पारंपरिक कला हासिये पर आ चुकी है। नई पीढ़ी ये काम करना तो नहीं चाहती, लेकिन कोई और काम नहीं मिलता तो कर लेते हैं।  

यह कहना है गांव फरमाना बादशाहपुर के रामपाल प्रजापति का, जो पीढ़ियों से चली आ रही मिट्टी के बर्तन बनाने की कला को आगे बढ़ा रहे हैं।रामपाल प्रजापति ने बताया कि पहले मेरे पिता जी यह काम करते थे और उनके बाद मैंने भी यही काम करना शुरू कर दिया। वे यह काम बचपन से ही करते आ रहे हैं इस काम में परिवार के दूसरे लोग भी हाथ बटाते हैं। सभी मिलजुल कर छोटे-बड़े मटके, हुक्के की चिलम, दीये, करवे, अहोई व्रत के लिए छोटी मटकी और मिट्टी के दूसर बर्तन बनाते हैं। 

पहले बच्चों के लिए मोमबत्तियां जलाने की हिढडो बनाई जाती थीं लेकिन चाईनीज सामान आने के बाद अब ये रिवाज खत्म होता हो गया। पहले मिट्टी का समान खूब बिकता था लेकिन चाईनीज सामान बाजार में आने के बाद हमारे इस परंपरागत काम को पूरी तरह से चौपट कर दिया। 

बिजली से चलने वाले चाक आने से बचा समय

विवाह-शादियो में चाक पूजन की परम्परा पहले से चली आ रही है आज भी महिलाएं यह परम्परा निभा रही है। पहले पत्थर के चाक पर हाथ से चलाकर बर्तन बनाते थे लेकिन कुछ जब से बिजली के चाक आ गए हैं इसमें बर्तन बनाने में समय भी कम लगता है और कम समय में बर्तन भी ज्यादा बर्तन लेते हैं।

अब गांव में नहीं मिलती बर्तन बनाने की मिट्टी

रामपाल प्रजाप्रति ने बताया कि जिस मिट्टी से बर्तन बनते हैं वह मिट्टी कहीं-कही मिलती हैं पहले मिट्टी गांव में बहुत मिलती थी लेकिन अब गांव में इस तरह की मिट्टी नहीं मितती। अब यह मिट्टी पास वाले गांव से लेकर आनी पड़ती है यह बर्तन सिर्फ काली मिट्टी से ही बनते हैं इसके अलावा इनमें दूसरी मिट्टी का उपयोग नहीं होता। मिट्टी के बर्तनों को बनाने के बाद धूप में सुखा जाता है और उसके बाद भट्टी में पकाया जाता है।

रामपाल प्रजापति, रवि प्रजापति, राहुल प्रजापति, धनपति देवी ने जैसा 24सी न्यूज को बताया।

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