लोगों के बीच रहने के लिए उन जैसा ही होना पड़ता है

कहते हैं एक बार किसी जादूगर ने एक नगर के सभी कुओं में कुछ ऐसा पदार्थ डाल दिया कि जो भी उस पानी को पीता पागल हो जाता है। जादूगर ने नगर का केवल एक कुआं छोड़ा, यह कुआं उस नगर के राजा के प्रयोग के लिए था।
पानी तो हर व्यक्ति को पीना होता है। ऐसे में जो भी पानी पीता गया पागल होता गया। इस प्रकार पूरा नगर पागल हो गया।
केवल राजा जो नगर के कुओं का प्रयोग नहीं कर रहा था। पागल होने से बचा थे।
जब पूरा नगर पागल हो गया तो नगरवासियों ने एक सभा और सबने कहा कि उन्हें लगता है कि उनका राजा पागल हो गया हैं। राजा ऐसी बातें कर रहा है जो उनके समझ में नहीं आती, इसलिए जरूरी है पागल राजा को बदल दिया जाए। अन्यथा नगर पर कोई मुसीबत आ जाएगी।
यह बात राजा को भी पता चली। राजा परेशान हुआ। ऐसे में उसने अपने सबसे अनुभवी मंत्री को बुलाया और पूछा कि ये मामला क्या है? मंत्री ने पूरी जानकारी लेने के बाद राजा से कहा कि आप भी नगर के कुओं का पानी पीना शुरु कर दो।
राजा ने ऐसा ही किया। नगर के कुएं का पानी पीने के बाद राजा भी पागल हो गया।
अब राजा भी प्रजा जैसी ही बातें करने लगा तो प्रजा को लगा कि राजा ठीक हो गया। प्रजा ने खुशियां मनाई कि उनका राजा अब पागल नहीं रहा। अब कौन समझाए कि प्रजा के साथ भी अब राजा भी पागल हो गया था।
कहानी का सार ये है कि व्यक्ति समूह के रूप में अगर पागलपन सोचने लगें तो पागलपन ही सयानापन हो जाता है। पागलों के बीच एक सयाने की भी कोई कीमत नहीं हैं चाहे वो राजा ही क्यों ना हो?

आपका दिन शुभ हो!!!!!

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