अपने मुर्गें को लेकर दूसरे गांव में चली गई बुढ़िया
कहा अब नहीं उगेगा इस गांव में सूरज
एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। उसका एक मुर्गा था। हर सुबह सूरज उगने के साथ ही मुर्गा बांग देता। धीरे-धीरे बुढ़िया को वहम हो गया कि सूरज उसके मुर्गें की बांग से ही उगता है। यदि उसका मुर्गा बांग ना दे तो सूरज उगना ही बंद हो जाएगा।
ऐसा सोचकर बुढ़िया मंे अहंकार आ गया। उसने गांव वालों को ड़राना आरंभ कर दिया कि यदि उसके अनुसार वे नहीं चले तो वह गांव छोड़ कर चली जाएगी। अपने मुर्गें को साथ ले जाएगी। फिर उनके गांव में सूरज नहीं उगेगा।
पहले गांव वालों ने उस बुढ़िया के सम्मान में कुछ नहीं कहा। वे उसकी इज्जत करते रहे। कहते रहे कि वो गांव से ना जाएं। बुढ़िया को और अधिक घमंड हो गया कि गांव वालों को उससे गांव में रखना ही पड़ेगा। वह गांव वालों को लगातार घमकी देती और अपने मुर्गें को अपने साथ ले जाने की बात करती। आखिर गांव वालों ने उसकी तरफ ध्यान देना बंद कर दिया।
बुढ़िया ने इसे अपना अपमान माना और अपने मुर्गें को लेकर दूसरे गांव में चली गई। अब सुबह तो दूसरे गांव में भी होनी ही थी। मुर्गें ने बांग भी उसी समय देनी थी। सूरज उगने लगा और मुर्गें ने इस गांव में बांग दी।
बुढ़िया ने कहा कि अब रोएंगे, उस गांव वाले। सूरज तो इस गांव में उग गया। वहां तो सूरज नहीं उगा होगा। अब बुढ़िया को कौन समझाएं कि मुर्गें की बांग से सूरज नहीं उगता, सूरज के उगने से मुर्गा बांग देता है। सूरज तो उस गांव में भी उगा है।
हम भी कई बार अपने पास होने वाली वस्तु का कुछ ज्यादा ही घमंड कर लेते हैं। लगता है कि हमारे बिना कुछ नहीं होगा। भूल जाते हैं कि दुनिया पहले भी चलती थी। आगे भी चलेगी। सूरज मुर्गें की बांग से नहीं उगता। सूरज तो सूरज है वह उगता ही है। (ओशो प्रवचन)
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