फकीर ने अपना लिया किसी अन्य के बच्चे को

एक बार एक गांव में एक फकीर रहता था। गांव वालांे ने ही उसे गांव के पास ही एक झोपड़ा बना देने की जगह दे रखी थी। वह उसी गांव में भीक्षा मांगता था। भगवान का भजन करता और मस्त रहता।
एक दिन उसके पास गांव के लोग आए। वे अपने साथ एक नवजात शीशु को लिए हुए थे। गांव वालों ने आते ही फकीर के झोपड़े में आग लगा दी। फकीर की पिटाई की और कहा कि ये बच्चा तुम्हारा है।
फकीर ने कहा कि अच्छा! ये बच्चा मेरा है। तुम्हे किसने कहा कि ये बच्चा मेरा है।
गांव वालों ने कहा कि इस बच्चे की मां ने हमें कहा है कि ये बच्चा आपका है। ये बच्चा एक कुआरी लड़की को हुआ है। जब लड़की से पूछा गया कि यह बच्चा किसका है उसने कहा कि यह बच्चा गांव के बाहर रह रहे फकीर का है।
गांव वालों ने कहा कि हम तो आपको सिद्ध फकीर मानते थे। आप ऐसे निकलोगे, ये तो हमने सोचा ही नहीं था। आपने गांव की लड़की के साथ ही ऐसा गलत काम किया। फकीर की ग्रामीणों ने खूब पिटाई की और वे उस बच्चे को फकीर के पास छोड़ कर चले गए।
फकीर ने कहा कि तुम सब कह रहे हो और इस बच्चे की मां भी कह रही है तो मान लेता हूं कि यह बच्चा मेरा ही है।
बच्चा भूख के मारे रो रहा था। फकीर ने बच्चे को गोद में लिया और गांव में भीक्षा के लिए निकल लिया।
फकीर जिस भी गली में जाता, ग्रामीण दरवाजे बंद कर लेते। उसको गालियां देते। कोई भीक्षा नहीं दे रहा था।
फकीर विनती कर रहा था कि गलती मेरी हो सकती है। बच्चे की तो नहीं। कृप्या बच्चे पर दया कर लो। बच्चे के लिए कोई थोड़ा दूध दे दो!
फकीर हर घर के सामने ऐसा की बोल रहा था, लेकिन कोई फकीर को दूध नहीं दे रहा था।
आखिर फकीर उस घर के सामने भी पहुंच गया। जिसमें वह लड़की थी, जिसको वह बच्चा हुआ था।
उसके कानों में भी फकीर की मार्मिक आवाज पहुंची। बच्चे की चीख उसे भी सुनाई दी। मां थी, आखिर हृदय पिघल गया।
उसने अपने पिता से क्षमायाचना की तथा कहा कि मैने झूठ बोला था। यह बच्चा फकीर का नहीं है। मैने फकीर का तो झूठा नाम लिया था। जिसका यह बच्चा है मैं उसे बचाना चाहती थी।
मुझे माफ कर दो! इस महान फकीर को ऐसी सजा ना दो। मेरा बच्चा वापिस ले लो उससे।
गांव वाले फिर एकत्र हुए। फकीर से माफी मांगी और पूछा कि आपने इस बच्चे को क्यों स्वीकारा? जब ये आपका था ही नहीं। आपने मार सही, आपका झोपड़ा जला दिया। आपका अपमान हुआ। फिर भी आप कुछ नहीं बोले।
फकीर ने कहा, जब भीतर का सत्य उद्घाटित हो जाता है तो मान और अपमपान का भय नहीं रहता। और फिर तुम मेरा तो झोपड़ा जला ही चुके थे। मेरी पिटाई तो कर ही चुके थे। इस बात की क्या गारंटी थी कि मैं कहता कि यह बच्चा मेरा नहीं है और तुम मान लेते!
अगर मान भी लेते तो फिर किसी और की पिटाई करते। क्योंकि क्या गारंटी थी वह लड़की इस बार सच बोल देती।
और इस बच्चे का क्या कसूर था? ये मेरे पास आ गया था तो मेरा ही हो गया था।
गांव के लोग फकीर के पैरों में गिर कर माफी मांगने लगे।
सच कहा है सत्य की राह पर चलना कठिन तो बहुत है, लेकिन सत्य का फल मीठा बहुत होता है। (ओशो प्रवचन)

आपका दिन शुभ हो!!!!!

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