100 साल पुराना है वर्तमान इतिहास
- घेऊ वाले तालाब के किनारे बना है यह ऐतिहासिक मंदिर
- 1982 में शुरु हुआ था वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार
- महान लेखक व संत पंडित कल्पनाथ थे प्रथम पुजारी
श्रद्धा औऱ विश्वास मानव के गहरे अंतर्मन की अनुभूति है। यही अनुभूति मानव को धर्म और आध्यात्म की अग्रसर करती है। महम का मनसा देवी मंदिर महमवासियों की इसी अनुभूति का ऐतिहासिक प्रमाण है। नवरात्रों में इस मंदिर की छटा और अधिक निखरने लगती है।
महम के नए बस स्टैंड के सामने स्थित इस मंदिर का इतिहास 100 साल से भी अधिक पुराना है।
यहाँ होता था घेऊ वाला तालाब
यह मंदिर महम के घेऊ वाले तालाब ऐतिहासिक तालाब के किनारे था। अब यह तालाब पाट दिया गया है। यहां पर मॉडल स्कूल बन चुका है। इस तालाब पर अत्यंत सुंदर घाट थे। माना जा रहा है कि तालाब की स्थापना के समय ही यहां मंदिर की स्थापना की गई थी। उस समय केवल कुछ मढ़ी बनी थी। एक मान्यता ये भी है कि यहाँ मंदिर पहले था, इसलिए यहां तालाब बनाया गया था।

पंडित कल्पनाथ शुक्ल ने उठाया था बीड़ा
1982 में यहां एक अत्यंत विद्वान तथा प्रभु भक्त पंडित कल्पनाथ जी आए। उन्होंने इस मंदिर की ऐतिहासिकता को पहचाना। उन्होंने यहां की भक्तों के सहयोग से माता मनसा देवी के मंदिर को नया रूप दिया। यह महम का उस समय इकलौता मनसा देवी मंदिर था।

झाड़-कंटीले पेड़ थे आसपास
मंदिर स्थल के आसपास बहुत अधिक अव्यवस्थित स्थान था। कंटीले झाड़ आसपास खड़े थे। स्थान अति निर्जन था। पंडित जी हिम्मत करते हुए माता मनसा देवी के नाम से मंदिर निर्माण शुरु कर दिया। निर्माण कार्य लगभग 4 साल में पूरा हुआ।

लगता है हर वर्ष भंडारा
मंदिर के वर्तमान पुजारी पंडित शिव शंकर शुक्ल ने बताया कि पंडित कल्पनाथ शुक्ल 18 मार्च 2008 को दुनिया को अलविदा का कह गए थे। उसके बाद से मंदिर की व्यवस्था और पूजा अर्चना उन्ही के जिम्मे है।

वैसे तो यहां पूरा साल श्रद्धालु आते है, लेकिन नवरात्रों में संख्या ज्यादा रहती है। नवरात्रों के नवमीं पर यहाँ भंडारा लगता है। जिसमे हज़ारों श्रद्धालु आते हैं। कोरोना महामारी के बावजूद भारी संख्या में इस वर्ष भी श्रद्धालु आ रहे हैं। कोविड-19 के सभी नियमों का पूरा पालन किया जा रहा है।

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