बटवारे के दर्द को अपनी आंखों से देख चुके कन्हैया लाल खुराना की जुबानी
सरहदें बन गई, देश बट गए। जो उनका गांव था, आज तो वो उसके देश में भी नहीं है। लेकिन 73 साल बीत जाने के बाद भी वो अपने गांव का ऐसे ही चित्रण करते हैं, जैसे आज भी वो उसी गांव की गलियों में खेल रहे हों। आज भी उसे उस गांव के खजूर के पेड़ बहुत याद आते हैं। अपने घर के पीछे का बगीचा और बगीचे में कुआं आज भी उसे ठीक ऐसे ही याद है जैसे वो हर रोज वहां अब भी फल चुनता है।
भारत और पाकिस्तान अलग हुए तब कन्हैया लाल मात्र नौ साल का था। लेकिन हालातों ने नौ साल के इस बालक को इतना समझदार कर दिया कि आज 82 साल की उम्र में भी बंटवारे की सभी बातें अच्छी तरह से याद हैं।
एक-एक वाकया रौंगटे खड़ा करता हैं। कन्हैंया लाल खुराना ने बताया कि बटवारे से पहले उनके गांव का नाम कुरैशी वाला तहसील लोधरा जिला मुलतान थी। पुश्तैनी काम खेती और दुकानदारी था। दादा हकीम थे।
बदल गए थे, कुछ ने सााथ दिया
कन्हैया लाल ने बताया कि बंटवारे के समय कुछ लोग उनके खून के प्यासे दिख रहे थे तो कुछ उन्हीं में से उन्हें बचाने के लिए आगे आ गए थे। एक शेर मोहम्मद मलिक थे उन्होंने उनके परिवार को बचाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने ऊंट मंगवाकर उन्हें सुरक्षित स्थान तक भेजा था। बाद में एक दरोगा ने भी उनके बिछुड़े परिवार के कुछ सदस्यों को तलाशने में मदद की। जो दोस्त दिख रहे थे दुश्मन हो गए थे और जो दुश्मन दिख रहे थे वो मदद के लिए आगे आ गए थे। एक तरफ कुछ लोग मारने के लिए उन्हें तलाश रहे थे, वहीं कुछ औरतें उनकी सलामती के लिए दुआएं भी कर रही थी।
कन्हैंया लाल ने कुछ बातें बहुत ही डरावनी भी बताई। जिन्हें बताया जाना यहां उचित नहीं है। हालांकि इतना जरुर है कि बटवारे ने इन्सान और हैवान के रूप को एक साथ उनके सामने प्रकट किया था।
साठ रुपए तौला बिका था सोना
कन्हैया लाल बताते हैं खजूर के पत्तों की पलड़ी और लकड़ी की डंडी बनाकर तराजू बना रखी थी। साठ रुपए तौला सोना बिका था। सबकुछ औने-पौने दामों पर बेचा रहा था। घोड़ियों की लीद और ज्चार की पुलियों में भी गहने और जेवरात छुपाए थे। मिट्ठी रोटी बनाकर उनमें मोती पिरोए थे। जब वो सूजाबाद के लिए बस में चढ़े तो उनके परिवार के एक दोस्त ने घड़े में उनके जेवरात छुपा के दिए। लोगों से कहा कि वो अपने दोस्त के परिवार को रास्ते में पीने के लिए पानी दे रहा है।
मनीआर्डर से मिला उधार का पैसा
कन्हैया लाल बताते हैं उनके पास जिला स्तर के कपड़े और तेल के डिपो थे। ऐसे में उनका काफी पैसा उधार में फंसा हुआ था। अब जब हम उस देश से ही आ गए तो पैसा मिलता भी कैसे, लेकिन कुछ लोगों ने ना जाने कैसे उनके पते तलाशे और मनीआर्डर से उनके पास पैसा भेजा।
यहा अब सब ठीक है
कन्हैया लाल कहते हैं शुरुआत में भी उन्होंने यहां बहुत बुरे दिन देखे। उन्होंने और उनके पिता जी ने मजदूरी की। उनकी पूरी जमीन भी उन्हें नही मिल पाई। लेकिन अब सब ठीक है। वे खुशी और आनंद से यहां रह रहे हैं, लेकिन उन्हें वो गांव याद तो आता है।