स्कूलों के सूने आंगन बाट जोह रहे अपने लाड़लों की
सब इस महामारी के शीघ्र विदा होने की उम्मीद कर रहे हैं और स्कूल अपने बच्चों के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।स्कूल का आंगन तभी खिलखिलाता है, जब उस पर बच्चे किलकारियां मारते हैं। स्कूल के पेड़, पौधे तभी खुशी से लहलाते हैं, जब उनके साथ बच्चे अठखेलियां करते हैं। स्कूल के लॉन, कमरे, आंगन, गलियारे, मैदान, सब पांच महीनों से सूने और सूनसान हैं।
अपने विद्यार्थियों के बिना शायद स्कूलों को ऐसा ही लग रहा होगा। जैसा माता-पिता को बच्चों के बिना लगता है। जी हां, कभी स्कूलों मे जाकर देखिए। वीरान लगते ये स्कूल जैसे
कह रहे हों
कहो, कब आओगे, के तुम बिन ये आंगन, सूना-सूना लगता है।
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल के प्राचार्य कौशल कुमार का कहना है कि उनका स्कूल सौंदर्यकरण में ब्लाक में प्रथम तथा जिले में दूसरे स्थान पर आया था। दसवीं के परीक्षा परिणाम में भी उनका स्कूल जिले में प्रथम रहा। लेकिन आजकल स्कूल सूना रहता है। स्टाफ स्कूलों में आता तो है, लेकिन बच्चों के बिना मन नहीं लगता, लेकिन मजबूरी है। महामारी के कारण हालात ही ऐसे हैं। भगवान से प्रार्थना है कि शीघ्र ही सब ठीक हो जाए और स्कूलों के आंगन फिर से महकने लगे।
एचडी सीसे स्कूल खेड़ी महम के निदेशक कुलवंत नहरा का कहना है कि स्कूल में बच्चों के लिए रेलनूमा झूला बनवाया था। बच्चे जब इस पर झूलते थे तो किलकारियां मारते थे। झूले और आंगन सब वीरान पड़े हैं। ऑनलाइन कक्षाएं ली जाती हैं तो मन करता है, बच्चों से अभी मिल लें। बच्चों और अध्यापकों दोनों को ही स्कूलों के खुलने का बेसब्री से इंतजार है।
भगवान करे, हालात जल्दी ठीक हो जाएं।
अध्यापक कर्मबीर ने कहा कि बच्चों के बिना स्कूल बस वीरान इमारतों जैसे लग रहे हैं। अभिभावकों का भी कहना है कि स्कूल, सरकार सब चाहते हैं कि बच्चे स्कूलों में जाएं, लेकिन कोराना महामारी के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा है। सब इस महामारी के शीघ्र विदा होने की उम्मीद कर रहे है। और स्कूल अपने बच्चों के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
I miss my school very much.