स्वामी जी के जीवन चरित्र व शिक्षाओं को याद किया

महम, 6 फरवरी
महम के गांव फरमाना में विश्व विख्यात आर्य सन्यासी स्वामी सत्यपति की द्वितीय पुण्यतिथि का आयोजन किया गया । आर्य समाज के मंत्री डॉ राजेश आर्य ने बताया कि स्वामी सत्यपति जी पहले का नाम मुन्शी राम था। फरमाना की पावन धरा पर जन्मे मुंशी राम 21 वर्ष तक अनपढ़ रहे, खेतों में अपने कई साथियों के साथ भजन गाते व बांसुरी बजाया करते थे। आजादी से पहले 1947 में हिन्दू मुस्लिम की लडाई के दृश्य ने स्वामी जी के जीवन को ही बदल कर रख दिया।
उन्होंने 21 वर्ष की आयु में पढाई शुरू की गुरुकुल सिंहपुरा गुरुकुल झज्जर में विद्या अध्यन करके संन्यास की दीक्षा ली और उसी दिन से सत्यपति नाम रखवा कर सत्य की खोज में निकल पड़े। उसके बाद उन्होंने रोजड़ में साबरकांठा स्थान गुजरात में दर्शन योग महाविद्यालय की स्थापना कर दी और हर वर्ष सैकड़ों शिष्यों को वेदाध्यन करवाते थे। आज उन्हीं के प्रयास से स्वामी जी के शिष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वेदो का डंका बजाते हैं।
इस अवसर पर आर्य समाज के प्रधान नफे सिंह आर्य, कोषाध्यक्ष जयपाल आर्य, समाजसेवी महावीर सहारण, सरपंच गूगन सिहं, प्राचार्य जयवीर शर्मा, सुरेश शर्मा, राजवीर आर्य, सत्यवीर आर्य, सोनू रोहिल्ला, हवासिंह रोहिला, सत्यवीर दरोगा, हवा सिंह रोहिल्ला, कर्ण आर्य, अर्जुन आर्य, राकेश रोहिल्ला सैमाण, सुनील रोहिल्ला, ओमप्रकाश, अशोक शर्मा मालवी, सागर आर्य, शुभम आर्य आदि आस पास के गांव से सैकडौ आर्यजन उपस्थित रहे। इंदु दहिया/ 8053257789

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