निन्यानवे का फेर
कहते हैं एक राजा का सेवक बहुत खुश रहता था। वह राजा की सेवा करता और मस्त रहता। उसे जो मिलता उसी में गुजरा करता। जो मिलता शाम तक उसे खर्च करता और सुबह की चिंता किए बिना सो जाता। राजा उसे खुश देखकर मन ही मन ईष्र्या करता। सोचता कि वो राजा है उसके पास सबकुछ है। फिर वो इतना खुश नहीं है जितना उसका नौकर।
एक दिन उसने अपने सबसे बुद्धिमान वजीर से इस बारे में पूछा कि इस नौकर की खुशी की राज क्या है। वजीर ने कहा ‘महाराज इसकी खुशी का राज तो मैं आपको नहीं समझा सकता, लेकिन इसकी खुशी गायब कर सकता हूं।’
राजा ने वजीर से कहा,’मुझे नहीं लगता इसकी खुशी गायब हो सकती है। फिर भी आपकों लगता है कि आप इसकी खुशी गायब कर सकते हो तो करके दिखाओ।’
वजीर ने राजा के नौकर के घर में एक रुपयों की थैली रखवा दी। नौकर ने देखा और लालच आ गया। उसने रुपए गिने तो थैली में 99 रुपए थे।
अब नौकर को और लालच आ गया। सोचने लगा कि एक रुपया और होता तो कितना अच्छा होता। पूरे सौ रुपए हो जाते उसके पास।
अब वजीर इसी उधेड़ बुन में पड़ गया कि काश। उसके पास एक रुपया और होता।
अगले दिन जब वह राजा की सेवा के लिए गया तो राजा ने देखा कि वह कुछ उदास था। राजा ने उससे पूछा ‘क्या बात है। अब से पहले तो आपको कभी ऐसे उदास नहीं देखा।’
नौकर राजा से कभी कुछ छुपाता नहीं था। उसने राजा को 99 रुपए मिलने की बात बता दी। साथ ही यह भी बता दिया कि वह चाहता है कि उसके पास एक रुपया और हो।
राजा समझ गया, ये सब वजीर ने ही किया। साथ ही ये समझ गया कि राजा की खुद की परेशानी और बेचैनी का कारण क्या था। जब केवल 99 रुपए पाकर एक व्यक्ति परेशान हो सकता है तो उसके पास तो बहुत अधिक दौलत है। राजा का समझ आ गया कि दौलत खुशी नहीं बेचैनी देती है। और अधिक पाने की लालसा में व्यक्ति बेचैन हो जाता है।
आपका दिन शुभ हो!!!!!
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