एक किसान व राजा की कहानी
एक बार लगातार सूखे के कारण एक किसान के पास खाने के पास कुछ नहीं बचा। उसकी पत्नी के कहने पर वह उस राज्य के राजा के पास सहायता मांगने चला गया। किसी समय भ्रमण पर आए राजा की किसान ने सहायता की थी और राजा ने भी किसान को मुसीबत के समय किसान को सहायता का वचन दिया था।
किसान जब राजा के पास पहुंचा तो राजा ने उसका दिल खोल कर स्वागत किया। किसान के कपड़े फटे हुए थे। जूती टूटी हुई थी।
राजा ने किसान के लिए तुरंत सुंदर पोशाक मंगवाई और उसे राज्य का वित्त मंत्री बना दिया।
किसान ने अपने फटे पुराने कपड़ें तथा जूतियां एक छोटे से संदुक में रख लिए और उन्हें हमेशा अपने साथ रखता।
वित्तमंत्री बने किसान की सूझबूझ व ईमानदारी के चलते राज्य के खजाने में वृद्धि होने लगी और जनता भी खुशहाल होने लगी। राजा अपने किसान मित्र से खुश था। किसान की वितमंत्री के रूप में ख्याति बढ़ने लगी तो राजा के अन्य मंत्री व दरबारी उससे ईर्ष्या रखने लगे।
उन्होंने राजा के कान भरने शुुरु कर दिए। आखिर एक दिन दरबार मे ही आरोप लगाया दिया कि महाराज ये वित्तमंत्री हमेशा एक छोटी सी संदूक अपने साथ रखता है। इस संदूक में खजाने से धन चुरा कर ले जाता है।
अब आरोप सार्वजनिक रूप से लगा था तो राजा होने के नाते किसान से कहना पड़ा कि वो अपनी संदूक को दरबार में ही अभी खोल कर दिखाए।
किसान ने काफी मना किया, लेकिन दरबारी नहीं माने और संदूक खुलवाने पर अड़े रहे।
आखिर किसान ने संदूक खोली तो उसमे से उसकी पुरानी फटी धोती, कमीज और टूटी जूतियां निकली।
सब हैरान, राजा ने पूछा, इन्हें साथ क्यों रखते हो?
किसान ने कहा महाराज, ये मुझे मेरी वास्तविकता की याद दिलाते रहते थे ताकि मेरे अंदर अंहकार ना आए और मैं किसी का बुरा ना करु।
किसान ने उसी समय मंत्री की पोशाक को उतार कर अपने पुराने कपड़े व जूती पहन लिए और राजा से अपने गांव वापिस जाने के लिए विदा ले ली।
राजा के बहुत मना करने पर भी वह नहीं माना। उसने कहा, बारिश हो गई है महाराज, मेरे खेत मेरी बाट जोह रहे होंगे। आप अपने राज्य को संभाले।
किसान ने सीखा दिया कि इंसान को अपनी जड़ों से नहीं कटना चाहिए।