स्वर्ग-नरक की चिंता छोड़कर वर्तमान में जीओ
एक बार भगवान बुद्ध यात्रा पर थे। उन्हें रास्ते में एक समूह में बैठे कुछ व्यक्ति देखे। वे बहुत उदास थें। जैसे रोने को थे। बुद्ध ने उनसे पूछा कि आप इतने उदास क्यों हों?
उन व्यक्तियों ने बुद्ध से कहा कि उन्हें नरक का भय सता रहा है। उन्हें लग रहा है कि अगर वे इस जीवन के बाद नरक में चले गए तो आगे वे बहुत कष्ट भोगेंगे।
भगवान बुद्ध कुछ और आगे गए तो इसी प्रकार व्यक्तियों का एक ओर समूह था। ये भी उदास थे। परेशान दिख रहे थे। बुद्ध ने इनसे भी पूछा कि तुम क्यो उदास हो?
इन्होेंने कहा कि उन्हें स्र्वग की चिंता है। अगर उन्हें स्वर्ग नहीं मिला तो उनका क्या होगा?
अर्थात पहले वाले नरक की चिंता में दुःखी और दूसरे वाले स्वर्ग की चिंता में दुःखी। दुःखी दोनों।
अब भगवान बुद्ध और आगे गए तो उन्होंने व्यक्तियों का एक और समूह मिला। ये व्यक्ति खुश थे। नाच गा रहे थे। मस्ती कर रहे थे। बुद्ध ने इनसे पूछा कि तुम्हारी खुशी का राज क्या है?
उन व्यक्तियों ने कहा कि उन्होंने स्वर्ग नरक की चिंता छोड़ दी है। बस ध्यान करते हैं। प्रभू स्मरण करते हैं और वर्तमान में जीते हैं। आगे क्या होगा कोई चिंता नहीं है।
भगवान बुद्ध ने कहा कि स्वर्ग और नरक की चिंता किए बिना वर्तमान को सत्यता से जीना चाहिए। यहीं स्वर्ग है।
ओशो प्रवचन
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