संतों की वाणी
संतों ने कहा है कि कुछ विद्वानों का ज्ञान हौद की तरह होता है। जिस प्रकार हौद को ईंट, पत्थर, कंकर से बनाया जाता है और उसमें बाहर से पानी ला के भर लिया जाता है।
ऐसे ही कुछ ज्ञानी कुछ सुन सुनाई और किताबों से पढ़ी बातों का उच्चारण भर करके ज्ञानी कहलाने लगते है। और सामान्य भी व्यक्ति जिस प्रकार हौद को जलस्त्रोत मान लेता है। ऐसे ही केवल किताबी ज्ञान का उच्चारण करने वालों को भी ज्ञानी मान लेता है।
वास्तविक ज्ञान कुएं की तरह होता है। कुएं से मिट्टी, कंकर, पत्थर पहले निकालने पड़ते है। फिर ज़मीन के नीचे से वास्तविक जलस्त्रोत तलाशना पड़ता है। उसी प्रकार असली विद्वान हृदय की ज्योति जला कर अपने भीतर ज्ञान का स्त्रोत निकालते हैं।
अतः संतों का कहना है ज्ञान कुएं जैसा होना चाहिए। हौद जैसा नही।
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