शानदार छटा बिखेरता हैं गुंबद

1531 में बनी थी महम की जामी मस्जिद

अब है यहां बड़ा गुरूद्वारा
महम की इतिहास की एक अत्यंत रोचक व प्रामाणिक जानकारी
महम

ईंटों के साथ इंटे जुड़कर सदियों से इमारतें बनती रही हैं। समय के चक्र में कोई टूट कर गिर गई तो किसी को सहेज लिया गया। कोई इतिहास के पन्नों में भी दर्ज नहीं हुई तो किसी का इतिहास बन गया।
महम मानव सभ्यता के अति प्राचीन स्थलों में से एक है। यहां न जाने कितनी ऐतिहासिक तथ्य दफन हैं। कुछ ऐसे भी तथ्य हैं जो महम के इतिहास के प्रामाणिक गवाह हैं।
24सी न्यूज आज आपकों एक ऐसी इमारत से रूबरू करवा रहा है, जिसके निर्माण की प्रामाणिक जानकारी यह इमारत खुद कहती है। इस इमारत के बारे में न केवल पूरा महम तथा आसपास का इलाका ही नहीं जानता है, बल्कि यहां से गुजरने वाले की नजर से भी यह छूप नहीं सकती, क्योंकि यह इमारत महम में सबसे अधिक ऊंचाई पर है।
जी हां, 24सी न्यूज की आज की संडे की स्टोरी महम की जामी मस्जिद पर है, जिसे आज बड़े गुरुद्वारे के रूप में जाना जाता है।
महम के किसी भी ओर से अगर महम की ओर देखा जाएगा तो यह एक इमारत दिखाई देगी जिस पर गुंबद बना है। यही इमारत महम की जामी मस्जिद है।

नवनिर्माण के बावजूद वैभव बचा है जामी मस्जिद का

हुमांयु की बेगम ने करवाया था निर्माण
इस इमारत का निर्माण बादशाह हुमायु की बेगम ने सन् 1531 में करवाया था। इस इमारत का नाम जामी मस्जिद रखा गया। यहां मुस्लिम धर्मावलंबी नमाज पढ़ते थे। मस्जिद के दक्षिण किनारे से पौड़ियां चढ़ती हैं। इन्ही पौडियों के समाप्त होने पर छत पर ’अजान’ देने का स्थल बना था।

आज भी लगा है 490 साल पुराना निर्माण पत्थर

1667 में हुई मरम्मत
इस मस्जिद की 1667 में औरंगजेब के शासनकाल में मरम्मत की गई। मस्जिद के निर्माण तथा मरम्मत से संबंधित दोनों ही कार्यों के शिलालेख मस्जिद में लगाए गए थे। जिनमें से एक शिलालेख अब भी उपलब्ध है। फारसी में लिखे इन शिलालेखों का जिक्र महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के प्रो. स्वर्गीय शीलक राम फौगाट ने अपनी पुस्तक ’इन्सक्रिप्शनस आॅफ हरियाणा’ में किया है। तथा इनका विवरण दिया है। इतिहासकार व लेखक डा. रणबीर फौगाट ने भी अपने एक लेख ’ अभी भी कायम है महम की महिमा’ में इन शिलालेखों का जिक्र किया है। ये शिलालेख फ़ारसी में हैं। एक शिलालेख अब भी इसके द्वार के साथ देखा जा सकता है।
शानदार नक्काशी थी
मस्जिद के गुंबद के भीतरी हिस्से में शानदार मुगलकालीन नक्काशी थी। हालांकि अब इस नक्काशी को पोत दिया गया है। सैकड़ों वर्ष बीतने के बावजूद नक्काशी की चमक ज्यों की त्यों थी।

ये हैं सीढ़ियां

अब है गुरुद्वारा
अच्छी बात यह है कि अब इस मस्जिद में गुरुद्वारा है। जिन भी ऐतिहासिक इमारतों में गुरुद्वारे है। उनमें से अधिकतर ऐतिहासिक स्वरूप को कायम रखते हुए उनका रखरखाव किया गया है। महम के गुरुद्वारे इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। जिन इमारतों में गुरुद्वारे स्थापित हैं, उनके ऐतिहासिक स्वरूपों को सहेज कर रखा गया है।
अब हो रहा है परिसर का आधुनिकरण
पार्षद मनोज कुमार उर्फ शंपी तागरा ने बताया कि गुरुद्वारा पसिसर में लगातार यथासंभव निर्माण करवाया जाता रहा है। हालांकि इसके मूल ढ़ांचे को सुरक्षित रखा गया है। फिलहाल गुरुद्वारा परिसर का एक करोड़ की लागत से नवनिर्माण चल रहा है। इसके बावजूद मूल ढ़ांचा ज्यों का त्यों है। समय पर समय पर मरम्मत अवश्य करवा दी जाती है।

लगे हैं रंगीन फव्वारे (सभी फोटो शंपी तागरा)

लगे हैं रंगीन फव्वारे
गुरुद्वारा परिसर के सामने रंगीन फव्वारे लगाए गए हैं। जो रात के समय अत्यंत मोहक दृश्य उत्पन्न करते हैं। इसके अतिरिक्त लंगर स्थल तथा कीर्तन स्थल आदि का निर्माण हो रहा है। शंपी तागरा ने बताया कि गुरुद्वारा में नियमित रूप से कीर्तन सत्संग व धार्मिक आयोजन होते हैं।
40 मीटर ऊंचे स्थल पर बनी है इमारत
जामी मस्जिद अर्थात वर्तमान बड़ा गुरुद्वारा महम के बाहरी भूतल से 40 मीटर ऊंचाई पर है। जनस्वास्थ्य विभाग के एसडीओ राजेश गौतम से मिली जानकारी के अनुसार महम के जलघर की पानी की टंकी 50 मीटर ऊंची है। इसे महम के सबसे ऊचे स्थल से 10 मीटर ऊपर रखा गया था। महम का सबसे ऊंचा स्थल बडे गुरुद्वारे का भूतल है जो जलघर के भूतल से लगभग 40 मीटर ऊंचा है।

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