सौ साल पहले हुआ था मोखरा की चौपाल का निर्माण
कारीगीरी का शानदार नमूना है मोखरा के पाना खेड़ी की बाहरली चौपाल
24सी न्यूज, संजीव मोखरा
महम ही नहीं बल्कि हरियाणा में सबसे बड़े गांवों में उच्च स्थान रखने वाला गांव मोखरा एक प्रसिद्ध गांव है। यहां की परंपराएं तथा लोगों का खास अंदाज इस गांव को विशेष पहचान देता है। इस ऐतिहासिक गांव में कई ऐतिहासिक चौपालें, इमारत तथा तालाब हैं। इनमें से एक चौपाल है मोखरा खेड़ी की बाहरली चौपाल।
यह चौपाल लगभग सौ साल पहले बनाई गई थी। इस चौपाल को राजपूत ब्राह्मणों वाली चौपाल के रूप में भी जाना जाता है।
ग्रामीण ओमप्रकाश, रामभूल, प्रकाश, बलजीत, रणधीर व मदन ने बताया कि उस समय सामूहिक स्थल के निर्माण के लिए सरकार या प्रशासन से कोई सहायता नहीं मिलती थी। ग्रामीणों को सामूहिक स्थलों की आज से भी ज्यादा जरुरत थी। उस समय निजी वैंकेट हॉल या अन्य ऐसे स्थल नहीं होते थे, जहां कोई बड़ा समारोह किया जा सके। उन दिनों चौपालों का निर्माण गौरव व सम्मान का प्रतीक होता था।
ग्रामीणों ने खुद मजदूरी करके चौपाल का निर्माण करवाया था। चौपाल के निर्माण के ग्रामीणों अपनी हैसियत से भी ज्यादा दान देने का प्रयास किया था। कहते हैं कुछ लोगों ने तो चौपाल निर्माण के लिए पैसे देने के लिए अपनी ज़मीन तक गिरवी रख दी थी।
कोडिय़ां पीस कर बनाया था रंग
लगभग पांच सौ गज में बनी यह चौपाल कारीगिरी का भी खास नमूना है। चौपाल निर्माण में चूने का प्रयोग हुआ है। इस चौपाल पर पहली बार किए गया रंग कोडियां पीस कर बनाया गया था। जो बहुत चिकना था। चौपाल में शानदार चित्र उकेरे गए थे। जिनकी बानगी अब भी देखने को मिल जाती है। लगभग बीस साल पहले इन चित्रों को दोबारा से सजाया गया था।
चौपाल में राजपूत बीरबल सिंह, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, पंडित कांशीराम आदि के अतिरिक्त अन्य शानदार चित्र भी उकेरे गए हैं। राधाकृष्ण व महाराणा प्रताप की पेंटिंग भी हैं।
श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक
यह चौपाल ग्रामीणों के लिए श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। ग्रामीणों का कहना है कि चौपाल में होने वाली पंचायतों में झगड़ों का निपटारा हो जाता है। ग्रामीण चौपाल में आकर झूठ नहीं बोलते। यह चौपाल ग्रामीणों के लिए पूज्य स्थल भी है। बच्चे की जन्म पर यहां थोक लगाते हैं। पाना के अधिकतर सामूहिक आयोजन इसी चौपाल में होते हैं।