भाई के लिए थी मुसीबत, पिता ने पहचाना हुनर

*युवा महिला पहलवान की ऐसी दास्तां पढ़कर हैरान रह जाएंगे
*ताकत का ऐसा संगम की भविष्य में ओलंपिक पदक तय माना जा रहा है
*अपने भारवर्ग में है नेशनल चैंपीयन
*एशियाई खेलों के लिए चयन पक्का
*सुबह से शाम तक करती है कड़ी मेहनत
*मां भी कर रही है साथ ही तपस्या
*पिता ने पहचाना था बेटी के पहलवान होने का गुण
*पिता के दादा और पड़दादा थे ख्याति प्राप्त पहलवान
*गांव खरकड़ा की इस बेटी की गजब कहानी

महम
अपने से बड़ी लड़कियों को तुरंत चित्त करना उसके बाए हाथ का खेल है। ना वो किसी से ड़रती है और ना किसी को ड़राती है। बस जो पहलवान सामने आती है उसे हराती है। ताकत और दिमाग का बेजोड़ संगम है खरकड़ा की रीतिका। भविष्य में महम चैबीसी और हरियाणा ही नहीं पूरा देश इस पहलवान से ओलंपिक पदक की आस कर रहा है और रीतिका इसके लिए वादा भी करती है।
खरकड़ा की 18 वर्षीय रीतिक हाॅल में ही 72 कि.ग्रा. वर्ग में नेशनल चैंपीयन बनी है। 12वीं कक्षा की छात्रा रीतिका ने 2015 में कुश्ती शुरु की थी। इस बीच वह अपने भारवर्ग में कजाकिस्तान एशियाई खेलों में कांस्य पदक भी जीत चुकी है।


बचपन से है ताकत में बेजोड़
रीतिका बालपन से ही ताकतवर है। उसके पिता जगबीर ने बताया कि रीतिका का भाई रोहित उससे एक साल बड़ा है। वो सेना में भर्ती हो चुका है। बचपन में जब दोनों भाई खेलते थे तो रीतिका रोहित को जबरदस्ती घोड़ा बना लेती थी। उसके ऊपर बैठ जाती थी। रोहित चिल्लाता तब जाकर उसे छुड़वाया। इसी प्रकार उसके हाथ का घुंसा ऐसा लगता जैसे किसी बड़े आदमी का लगता हो।
उसकी यही ताकत देखकर उसे स्कूल में बाॅलीवाॅल खेल में भर्ती करवा दिया। अच्छा वाॅलीवाल खेलती थी। पदक भी जीते, लेकिन वाॅलीवाॅल में उसकी ताकत का पूरा प्रयोग नहीं होता था। ऐसे में 15 अगस्त 2015 को वे रीतिका को छोटूराम स्टेडियम रोहतक अखाड़ा में ले गए।


कर रही है जबरदस्त मेहनत
रीतिका जबरदस्त मेहनत कर रही है। सुबह चार बजे उठने के बाद पांच से नौ बजे तक अखाड़े में अभ्यास करती है। फिर खाना खाकर और कुछ आराम करने के बाद जिम जाती है। वहां कड़ी मेहनत करती है। फिर शाम को साढ़े तीन घंटे अखाड़े में अभ्यास करती है।


मां निभा रही है साथ
रीतिका के साथ उसकी मां नीलम भी पूरी तपस्या कर रही है। वह सुबह-शाम तथा जिम में अपनी बेटी के साथ जाती है। उसका पूरा ख्याल रखती है। किसी दिन मां नहीं जा पाती तो उसके नाना उसके साथ जाते है। पिता सेना के सेवानिवृत होकर बैंक में नौकरी करते हैं। वे साथ नहीं जा पाते।


पिता के दादा अमर सिंह अच्छे पहलवान थे
कहते हैं पहलवानों की पारीवारिक परंपरा में कुछ पीढ़ी में पहलवान पैदा हो ही जाता है। रीतिका के पिता के दादा अमर सिंह अच्छे पहलवान थे। कहते हैं खरकड़ा में पहलवानी में उनका नाम था। अमर सिंह के दादा बालू राम भी बहुत ही ताकतवर बताए गए है। रीतिका ताऊ जयसिंह भी फौज में थे। जयसिंह का बेटा जोगेंद्र भी सेना में था। जो इसी साल 28 जनवरी को युद्धाभ्यास के दौरान शहीद हो गया था।


ओलंपिक में गोल्ड है सपना
रीतिका का कहना है कि उसकी नजर केवल ओलंपिक के स्वर्ण पर है। इस पदक को वह हासिल करके रहेगी। रीतिका के कोच मनदीप पहलवान तथा हैं। जो रीतिका के साथ कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

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