डा. स्वामी विवेकानंद जी महाराज

धर्म केवल चर्चा का नहीं आचरण का विषय है

धर्म क्या है? ये समझना भी जरुरी
कलयुग के दौर में बहुत कुछ बदला है
धर्म में राजनीति ना हो राजनीति में धर्म जरुरी

महम

धर्म केवल चर्चा का नहीं, आचरण का विषय है। वक्त बदलता है, रीति रिवाज बदलते हैं यहां तक कि युग भी बदल जाते हैं, लेकिन धर्म अटल है और धर्म का पालन करने वाले भी अटल हैं। धर्म को धारण करने में ही कल्याण है। धर्म क्या है? ये समझना भी बेहद जरुरी है। धर्म के पालन से व्यक्ति के दु:खों का अंत होता है तथा व्यवहारिक जीवन में तो उन्नति करता है। साथ ही परमकल्याण की प्राप्ति करते हुए आत्मज्ञान के लक्ष्य को भी प्राप्त कर लेता है।
ये कहना है कि श्री श्री 108 महामंडलेश्वर स्वामी डा. विवेकानंद जी महाराज का। महम में श्रीभगवद धाम मंदिर में चल रहे भक्ति ज्ञान यज्ञ के दौरान आए स्वामी जी से 24c न्यूज की विशेष बातचीत हुई तथा आशीर्वाद मिला।
कलयुग का प्रभाव और बढ़ेगा
स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान दौर कलयुग का दौर है। और कलयुग में कई बार धर्म में भी अधर्म प्रवेश कर जाता है। उन्होंने कहा कि यह प्रभाव अभी और बढ़ेगा। व्यक्ति अर्थ के पीछे भाग रहा है। शासन व्यवस्था भी और समाज व्यवस्था भी अर्थ आधारित आचरणों को बढ़ावा दे रहे हैं। जो सही नहीं है।

स्वामी डा. विवेकानदं जी ने फल के माध्यम से समझाया धर्म क्या होता है?

क्या है समस्या का समाधान ?
सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति सात्विक जीवन जीने लगें, क्योंकि ये जनता के रोल मॉडल होते हैं। माता-पिता सदाचरण में रहें। अर्थ की अपेक्षा संस्कारों की शिक्षा को बढ़ावा मिले। धर्म व शास्त्र व्यवस्था के अनुरूप जीवनयापन ही मानव के जीवन को सजृनात्मक तथा सारयुक्त बना सकता है। उन्होंने कहा कि जीवन जीने का सबसे अच्छा सूत्र है कि आप दूसरों के लिए ऐसा ना करें जो दूसरों से स्वयं के लिए नहीं चाहते हों।
धर्म में राजनीति नही हो, राजनीति में धर्म जरुरी
धर्म मेें राजनीति नहीं बिल्कुल भी नहीं आनी चाहिए। राजनीति में धर्म अति आवश्यक है। धर्म तो केवल राजनीति में ही नहीं जीवन की हर क्रिया में होना चाहिए। मानव जीवन की क्रियाओं में धर्म नहीं होगा तो जीवन सृजनात्मक नहीं बल्कि विध्वसांत्मक होगा।

डा. स्वामी विवेकानंद जी महाराज का (फाइल फोटो)


विज्ञान की खोजे दर्शन पर ही आधारित हैं
विज्ञान सभी की खोज दर्शन पर ही आधारित है। संस्कारों का धारण, संस्कृति का पालन तथा संस्कृत भाषा से प्राप्त ज्ञान भारतीय संस्कृति की मूल धरोहर हैं। शिक्षा नीति में धार्मिक शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए।

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