अज्ञान के अंधकार में बहुत कुछ खो देता है मानव
एक दिन एक मछुआरा भोर होने से पहले ही नदी किनारे पहुंच गया। उसके पैर से कुछ टकराया। लगा कि एक थैला है, उसमें कंकड़ पत्थर भरे हैं।
उसने अपना जाल किनारे पर रख दिया और सूरज उगने की प्रतीक्षा करने लगा। सूरज उग आए और मछलियां पकड़े। तब तक वह खाली बैठा उस थैले से एक-एक पत्थर निकाल कर शांत नदी में फेंकने लगा। सुबह के सन्नाटे में उन पत्थरों के गिरने की छपाक की आवाज सुनता, फिर दूसरा पत्थर फेंकता।
धीरे-धीरे सुबह का सूरज निकला, रोशनी हुई। तब तक उसने झोले के सारे पत्थर फेंक दिए थे, सिर्फ एक पत्थर उसके हाथ में रह गया था। सूरज की रोशनी में देखते से ही जैसे उसके हृदय की धड़कन बंद हो गई, सांस रुक गई। उसने जिन्हें पत्थर समझ कर फेंक दिया था, वे हीरे-जवाहरात थे!लेकिन अब तक तो वह सबकुछ गवा चुका था। वह रोने लगा। इतनी संपदा उसे मिल गई थी कि अनंत जन्मों के लिए काफी थी, लेकिन अंधेरे में अज्ञानव सारी संपदा को पत्थर समझ कर फेंक दिया था।
लेकिन फिर भी वह मछुआरा सौभाग्यशाली था, क्योंकि अंतिम पत्थर फेंकने के पहले सूरज निकल आया था और उसे दिखाई पड़ गया था कि उसके हाथ में हीरा था।साधारणतः सभी लोग इतने सौभाग्यशाली नहीं होते हैं। जिंदगी बीत जाती है, सूरज नहीं निकलता, सुबह नहीं होती, रोशनी नहीं आती और सारे जीवन के हीरे हम पत्थर समझ कर फेंक चुके होते हैं।
जीवन में क्या छिपा था–कौन से राज, कौन सा रहस्य, कौन सा स्वर्ग, कौन सा आनंद, कौन सी मुक्ति–उस सबका कोई भी अनुभव नहीं हो पाता और जीवन हमारे हाथ से रिक्त हो जाता है!
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