सतोगुणी घर का मुख्य द्वार

गांव सीसर खास के टीले में बना है ‘सतोगुणी घर’

  • बांस, कच्ची ईटों, गारे और सरकंडों से बने हैं कमरे
  • हर कमरे की अलग विशेषता
  • मिट्टी के बर्तनों में बनता आर्गेनिक भोजन
  • मिट्टी के बर्तनों में ही खाते हैं खाना

हमारे पूर्वज झोपड़ियों और कच्चे गारे मिट्टी के मकानों में रहते थे। सुविधाएं नहीं थी, लेकिन शांत थे। स्वास्थ्य सेवाएं कम थी, लेकिन स्वास्थ्य थे। शिक्षा का अभाव था, लेकिन ज्ञानी थे।

लेकिन अब भौतिक सुख सुविधाओं की अंधी दौड़ ने मानव को मशीन बना दिया है। फिर से वो शुकुन और शांति चाहता है। फिर से लौटने लगा है अपने प्राचीन रहन-सहन और खानपान की ओर।

घर में मस्ती से खेलते बच्चे

महम चौबीसी के गांव सीसर खास राजपाल के परिवार ने एक ऐसा ही प्रयास किया है। इस परिवार ने अपने तथा आगुंतकों के लिए ‘सतोगुणी घर’ बनाया है। जो कंकरीट से नहीं बना। जिसे बड़े इंजीनियरों ने नहीं बनाया। खेतों में टीले पर बना यह घर बांस, कच्ची ईंटों और गारे, मिट्टी का बना है।

यह घर महम-भिवानी सड़क मार्ग पर सीसर गांव के निकलते ही सड़क से कुछ ही दूरी पर आधा एकड़ में बनाया गया है।

केवल बांस से बना दो मंज़िला कक्ष

ऐसा है सतोगुणी घर

सतोगुणी घर आधा एकड़ में बना है। इसमें चार कमरें हैं जो बांस, कच्ची ईंटों, गारे, सरकंडों और लकड़ी से बने हैं। फर्श भी कच्चे और गारे से लीपे हैं। हर कमरें की अपनी प्राकृतिक विशेषता है। एक कॉमन रुम है जो पूरी तरह बांस का बना है। एक कॉमन खुला मचान है यह भी बांस से बना है। एक अतिरिक्त दो मंजिला घर पूर्णतया बांस से बना है। अलग अलग शौचालय व स्नानघर हैं। साथ के खेत में ऑर्गेनिक खेती की गई है। लॉन और फूल और फलदार पौधे लगाए गए हैं जो धीरे-धीरे अपना आकार ले रहे हैं।

ऐसे दिखता है रात को यह घर

केरल तथा राजस्थान के कारीगरों ने बनाया है

इस घर को केरल तथा राजस्थान के कारीगरों ने बनाया है। यहां हाथ की चक्की से आटा पीसा जाता है। कहते हैं इससे आनाज के पोषक तत्व नष्ट नहीं होते। मिट्टी के बर्तनों में खाना परोसा जाता है। मिट्टी के बर्तनों में ही पकता है। लकड़ी की आग चूल्हे और हारे का प्रयोग ही होता है। इस घर के पास उगाई गई सब्जियों का ही प्रयोग यहां होता है।

ऐसे बने है कमरे

ऐसे आया आइडिया

राजपाल ने बताया कि उन्हें बुजुर्गों से जाना कि हमारे पूर्वज कैसे रहते थे और कैसा उनका जीवन था। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में भी वे स्वास्थ्य जीते थे। मन शांत रहता था। अगर हमारी रहने और खाने-पीने की व्यवस्था और वस्तु सात्विक हो तो हम शांत और स्वस्थ्य जीवन जी सकते हैं। बुजुर्गों की इस बात ने उन्हें ‘सतोगुणी घर’ बनाने का आइडिया दिया।

सरकंडो से बने फर्नीचर पर मिट्टि के बर्तन

क्या है योजना

राजपाल व धर्मदेव ने बताया कि फिलहाल तो उनका परिवार यहां आकर रहने लगा है। वे खुद यहां रहने का आनंद ले रहे हैं। लेकिन यदि कोई विशेष कार्य के लिए कोई व्यक्ति यहां आकर रहना चाहे तो स्वागत हैं। इसका उद्देश्य बिजनेस नहीं है। यदि कोई लेखक किताब लिखना चाहे। कोई यहां संगीत का अभ्यास करना चाहे। कोई अन्य ऐसा कार्य जिसके लिए शुकुन या एंकात चाहिए तो वह यहां आकर रह सकता है।

प्रकृति वातावरण में बना है घर

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