सौ सालों से भी ज्यादा से लगातार जा रहा है फरमाणा का परिवार, बाबा मस्तनाथ के दरबार

मेले की झलंकिया

महम
रोहतक के बाबा मस्तनाथ मठ में बाबा मस्तनाथ का मेला समूचे भारत के लिए आकर्षण का केंद्र होता है। तीन सौ वर्षों से भी अधिक समय से लग रहे इस मेले में लाखों की संख्या में साधक आते हैं। बाबा मस्तनाथ से महम के गांव फरमाणा के एक परिवार का भी गहरा संबंध है। सही मायने में तो आज यह परिवार बाबा मस्तनाथ के कारण ही आबाद है। यही कारण है कि यह परिवार पिछले सौ साल से भी अधिक समय से लगातार इस मेले में बाबा मस्तनाथ के दर्शन करने जाता है।


मस्तनाथ के आशीर्वाद से बच गया था ’मस्ता’

लगभग 70 वर्षीय रतन सिंह के अनुसार उनके उनके दादा उदमी के बच्चे जीते नहीं थे। पैदा होत ही मर जाते थे। किसी ने उन्हें सलाह दी कि वे एक बच्चे को बाबा मस्तनाथ के यहां चढ़ा दें। उदमी ने संकल्प लिया कि अगला जो भी बच्चा होगा वे उसे बाबा मस्तनाथ के यहां चढ़ा आएंगे। इस संकल्प के बाद उदमी के घर एक लड़का हुआ। जिसे वे लेकर बाबा मस्तनाथ के डेरे में चले गए। उस वक्त के गद्दीनशीन महात्मा ने उन्हें कहा कि उनके यहां संतान नहीं है, इसलिए वे इस बच्चे को अपने साथ ही लें जाएं।
बाबा ने उस बच्चे का नाम मस्ता रख दिया और कहां कि यह जीवित रहेंगा। ऐसा ही हुआ। न केवल मस्ता जीवित रहा, बल्कि उनका एक और भाई हुआ केदारा। अब मस्ता और केदारा का फरमाणा बादशाहपुर में एक भरापूरा बिसला परिवार है।


गांव में मंदिर भी बना रखा है
इसी परिवार के जगफूल बिसला ने बताया कि उन्होंने गांव में ही बाबा मस्तनाथ का मंदिर भी बना रखा है। इस मंदिर में पूरा गांव पूजा अर्चना करता है। उनके परिवार से मान्यता है कि वे हर वर्ष बाबा मस्तनाथ के दर्शन करने जाएंगे। ऐसा वे लगातार कर रहे हैं।


कौन थे बाबा मस्तनाथ
बाबा मस्तनाथ एक सिद्ध योगी थे। उनका जन्म रोहतक के ही गांव कसरेटी में 1764 में हुआ था। वे अस्थलबोहर स्थित डेरे में घोर तपस्या की। उनके जीवन से जुड़ी अनेक महान घटनाएं आज भी पूरे देश में चर्चित हैं। उन्हें बाबा गोरखनाथ के अवतार के रूप में भी जाना जाता है। उनकी याद में रोहतक में फाल्गुन में प्रति वर्ष मेला लगता है।

सभी फोटो जगफूल बिसला

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