कैसे गायों की सेवा करते-करते गायों जैसा हो गया श्वेतकेतू

एक कथा है कि एक पुरोहित पुत्र श्वेतकेतू ज्ञानार्जन के लिए गुरु के आश्रम में गए। निश्चित अवधि के बाद श्वेतकेतू शास्त्रों का पूरा ज्ञान प्राप्त कर लौटे तो उसे दरवाजे पर ही उसके पिता ने रोक लिया। श्वेतकेतू से पूछा कि क्या तुम ऐसा ज्ञान भी लेकर आए हो जिसे व्यक्त नहीं किया जा सकता? क्या तुम ऐसा ज्ञान भी लेकर आए हो जिसे सुना नहीं जा सकता?
श्वेतकेतू ने कहा कि ऐसा तो कोई ज्ञान उसे नहीं मिला। उसके पिता ने कहा कि तो जाओ तुम अभी ब्राह्मण हीं बने हो। ब्राह्मण बन कर आओ। ?
श्वेतकेतू वापिस अपने गुरु के पास गया। उसने कहा कि गुरुदेव पिता जी ने मुझे दरवाजे से ही लौटा दिया। पूछा कि क्या तुम ऐसा जानकर आए हो जिसे कहां नहीं जा सकता। कुछ ऐसा ज्ञान लिया है जिसे सुना नहीं जा सकता। ऐसा कोई ज्ञान तो गुरुदेव जी आपने मुझे दिया ही नहीं।
गुरुदेव ने कहा कि जो कहां नहीं जा सकता वो मैं तुम्हें कैसे बता सकता हूं? जो सुना नहीं जा सकता वो मैं तुम्हें कैसे सुना सकता हूं? ऐसा ज्ञान तुम्हें लेना है तो अभी और कुछ वर्ष बीताने होंगे। श्वेतकेतू ने कहा कि वह इसके लिए तैयार है गुरुदेव।
गुरु ने श्वेतकेतू से कहा कि आश्रम से चार सौ गाय जंगल में ले जाओ। और खुद को यहीं छोड़ जाओ। बस गायों का ग्वाला बन कर जाओ। जब गाय 400 से एक हजार हो जाएं तो तब आ जाना। गायों के सिवाय इस दौरान कोई और ध्यान नहीं करना।
श्वेतकेतू ने ऐसा ही किया। वह गायों को लेकर जंगल में चला गया। लगतार गायों की निश्छल आंखों में देखता रहता। धीरे-धीरे वह उन जैसा ही बन गया। एक वक्त ऐसा आया कि उसे ये ध्यान ही नहीं रहा कि गायों की गिनती कितनी हो चुकी है।
आखिर एक वक्त ऐसा आया कि गाय एक हजार हो गई, लेकिन तब तक श्वेतकेतू को ध्यान नहीं रहा कि उसे गाय गिननी थी। कहते हें तब गायों ने स्वयं श्वेतकेतू से कहा कि वे हजार हो गई हैं। लौट चलो।
तब श्वेतकेतू वापिस आश्रम आया तो ना गुरु ने कुछ पूछा और ना शिष्य ने कुछ बताया। बस इशारों मंे गुरु बता दिया कि तुम परीक्षा मं पास हो गया।
जब श्वेतकेतू घर गया तब उसके पिता ने देख लिया उसका पुत्र वास्तविक ब्राह्मण बना आया है। उसने अपनी पत्नी से कहा कि श्वेतकेतू अब उसके पैर छूएगा। वह पूर्ण ब्राह्मण हो गया है। और वह स्वयं अभी ब्राह्मण नहीं हुआ है। इसलिए उसका पिता पीछे की दरवाजे के अपने पुत्र के आने से पहले ही निकल गया।
अभिप्राय यही है कि परमात्मा का व्यक्त नहीं किया जा सकता। उसे सुना या सुनाया नहीं जा सकता। परमात्मा को बस अनुभव किया जा सकता है। अनुभव भी ऐसा जिसका वर्णन संभव नहीं है।
ओशो प्रवचन

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