सिंकदर के साथ जाने से इंकार कर दिया संत ने

कहते हैं सिकंदर ने भारत विजय के बाद एक भारतीय संत से कहा कि वह उसके साथ चले। संत ने सिकंदर से उसके साथ चलने से साफ इंन्कार कर दिया। सिकंदर नाराज हुआ।
उसने गुस्से में तलवार निकाल ली और कहा कि उसके हुक्म की ना फरमानी कोई नहंी कर सकता। आप सिकंदर के साथ चलने से इंकार करने परिणाम शायद नहीं जानते?
संत ने कहा राजा आप मुझे मृत्यु का भय दिखाकर डराने की भूल कर रहे हैं। मैने जीवन को समझ लिया है। मेरे लिए जीवन अब ऐसे ही है, जैसे भोजन करने के बाद भोजन की खाली थाली।
अब अगर आप इस थाली को छीन भी लोगे तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मैं तो जीवन रूपी भोजन को चख चुका हूं।
अगर आप तलवार चलाओगे तो एक साथ दो सिर जमीन पर गिरेंगे। एक मेरा सिर और एक तुम्हारा सिर।
मेरा सिर तो शरीर का सिर का सिर होगा और तुम्हारा सिर एक राजा के संत फकीर के सामने हारने का सिर होगा। इसलिए बेहतर हो तुम इस अंहकार को त्याग कर आगे बढ़ों और किसी फकीर को चुनौती मत दो!
कहते हैं सिकंदर को यह बात समझ आ गई। उसने संत से माफी और आगे बढ़ गया।
किसी व्यक्ति के लिए मृत्यु का भय केवल तब तक है जब तक वह जीवन से पार नहीं हो जाता। (ओशो प्रवचन)

आपका दिन शुभ हो!!!!!

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