सेवा, शांति और साधना का अद्भूत संगम थे स्वामी जी

वास्तव में निर-अंजन थे स्वामी निरजंन गिरी
सोमवार को है स्वामी जी का तीसरा निर्वाण दिवस
एक ऐसी आध्यात्मिक विभूति जिसे पाकर धन्य हुई महम की धरती

मानव तो आए दिन आते हैं और चले जाते है। बेहिसाब, अनगिनत। किसी को कुछ दिन याद किया जाता है तो किसी को कुछ दिन भी नहीं। लेकिन महामानव कभी-कभी ही जन्म लेते हैं और उन्हें वर्षों तक नहीं सदियों तक और युगों तक याद किया जाता है। उनको अपनी गोद में खिलाकर पृथ्वी धन्य होती है। और अपने आंचल में पाकर इलाका।
वे जाते नहीं हैं, बस नश्वर देह का त्याग कर देते हैं। उनके देह त्याग के बाद भी उनके सुकर्मों और आदर्शों की खुशबू मानवता को सुगंधित करती रहती है। ऐसे ही एक महामानव थे स्वामी निरंजन गिरी जी महाराज। स्वामी जी अपने नाम के अनुरूप ही निर अंजन थे अर्थात दोष रहित, निश्चल, महान।
5 अप्रैल को उनकों देह त्याग किए तीन साल हो जाएंगे। उनके निर्वाण दिवस पर 24c न्यूज इस बार की ’संडे स्टोरी’ स्वामी जी को ही समर्पित कर रहा है।
महम का चैथा पाना कहा जाने वाले गांव खेड़ी में चिकित्सा और आध्यात्मक का गजब संगम श्रीशिवानंद धर्माथ चिकित्सालय और आश्रम कउे महम क्षेत्र और हरियाणा में ही नहीं, बल्कि देश के अधिकतर हिस्सों में जाना जाता है। शायद यह प्रदेश में अपनी तरह अकेला ऐसा धमार्थ चिकित्सालय है जहां मरीज से एक पैसा भी नहीं मांगा जाता। दवाइयां भी निःशुल्क ही दी जाती हैं।


1933 में आए थे खेड़ी आश्रम
इस आश्रम की सातवीं पीढ़ी में स्वामी नान्हू गिरी जी के शिष्य निरंजनगिरी जी मात्र सात वर्ष की अल्पायु में 1933 में खेड़ी आश्रम में आए थे। प्राथमिक शिक्षा राजकीय प्राथमिक पाठशाला खेड़ी से पूरी की जबकि हाईस्कूल की शिक्षा राजकीय उच्च विद्यालय महम से प्राप्त की। उसके बाद आयुर्वेद में स्नात्तक की उपाधि ऋषिकेश से प्राप्त की।
महान चिकित्सक थे स्वामी जी
स्वामी निरंजन गिरी जी अपने गुरू नान्हू गिरी की तरह एक महान चिकित्सक थे। उनके के पास एक बार जो मरीज आ जाता था, बस उनके पास ही इलाज करवाता था। मरीजों का विश्वास इतना था कि स्वामी जी का हाथ मात्र लगने से मरीज अच्छा महसूस करते थे।
मरीज की सेवा सर्वोपरी
स्वामी जी के लिए मरीज और दुःखी व्यक्ति से महत्वपूर्ण कोई अन्य व्यक्ति नहीं होता था। उन्हें पैसे और पद की कोई लालसा नहीं थी। बहुत कम बोलते थे। अधिकतर समय मरीजों की सेवा और आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे। उनका सादा एवं सात्विक जीवन वर्तमान भौतिक युग में एक मिसाल था।


सूर्योदय से सूर्यास्त तक केवल सेवा
स्वामी जी सिद्धांत था कि सूर्योदय से सूर्यास्त तक केवल प्राणी सेवा में करनी है। अपने नित्यक्रम यहां तक पूजा पाठ भी सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद करते थे। ऐसी ही शिक्षा भी वे देते थे।
सामाजिक कार्यों में महान योगदान
स्वामी निरंजन गिरी जी न केवल आध्यात्मिक एवं चिकित्सा क्षेत्र में महान थे, बल्कि समाजिक कार्यों में भी उनका योगदान अतुलनीय रहा है। राजकीय महाविद्यालय महम आरंभ में जब संस्था के महाविद्यालय के रूप में स्थापित हुआ था, तब स्वामी जी ने इस संस्था को आर्थिक संकट से उभारने में बड़ा योगदान दिया था। इलाके के लोग मानते हैं कि महम में महाविद्यालय स्वामी जी की ही देन है। इसके अतिरिक्त जब भी कोई बड़ा सामूहिक कार्य होता था, स्वामी उसे पूरा करवाने में सहयोग व मार्गदर्शन देते थे। उनकी उपस्थिति मात्र से ही लोग खूब दान दे देते थे।


परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं डा. लांबा
स्वामी जी के श्ष्यि डा. केके लांबा स्वामी जी के बताए और दिखाए आदर्शों और सिद्धांतों को आगे बढ़ा रहे है। लगातार मरीजों की सेवा में लगे रहते हैं। चैबीसी रत्न डा. केके लांबा की मेहनत तथा उनके सेवाभाव का ही परिणाम है कि वर्तमान में श्रीशिवानंद धमार्थ चिकित्सालय में प्रतिदिन 300 से अधिक की ओपीडी है।

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