ऐसे बनी हैं यहां सती की समाधियां

21 एकड़ में फैले परिसर में दफन है महम के अग्रवालों का सदियों पुराना इतिहास

आज लग रहा है दादा सती परिसर में मेला
अग्रवाल आए हैं पूजा अर्चना के लिए
दादी सती विकास समिति दे रही है परिसर को आधुनिक रूप
महम

महम के इतिहास में इस तथ्य के पुख्ता प्रमाण हैं कि महम किसी समय अग्रवालों अर्थात बनियों को गढ़ होता था। संभवतः महाराजा अग्रसेन के काल के आसपास ही अग्रोहा से आकर अग्रवाल महम मंे बस गए थे। इस तथ्य के भी प्रमाण है कि महम के अग्रवाल देश दुनिया मंे फैले हुए हैं। महमियान के नाम से देश के कई शहरों में मौहल्ले व बस्तियां हैं।
महम के अग्रवालों के इतिहास से जुड़ा एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है रानी सती परिसर। यह परिसर महम के उत्तर पूर्व में गांव खेड़ी के पास है। यह परिसर लगभग 21 एकड़ का है। इस परिसर में स्थित प्राचीन पूजा स्थल व मंढिया अपने आप में इस तथ्य की गवाह हैं कि यहां बहुत कुछ घटित हुआ है।
ये है ऐतिहासिक तथ्य
यह स्थल प्राचीनकाल से मुख्य रूप से महम के अग्रवाल समाज का श्मशान भूमि स्थल रहा हैं। यहां लखौरी ईंटांे तथा उससे भी पहले के काल की मढ़ियां बनी हुई हैं। अग्रवाल सभा के प्रधान अनिल राय गोयल तथा रानी सती परिसर के खेती बाड़ी का प्रंबधन देख रहे विनोद कुमार गोयल ने बताया कि यहां जो मढ़ियां है वे अग्रवाल समाज की सती रानियों की हैं। महम के लगभग सभी गौ़त्रों की सती रानियों की यहां मढ़ियां बनी हुई हैं। ये कम से कम 700 साल से अधिक पुराना परिसर है।

प्राचीन पत्थरों से बनी हैं मंढी

पूर्व में महम का नाम था ’दकोवा’
24सी न्यूज को अनिल राय गोयल ने एक पुस्तिका उपलब्ध करवाई। ’दादी तमोलदेह रानी का इतिहास’ नामक इस छोटी सी पुस्तिका में एक अत्यंत महत्पूर्ण तथ्य मिला। इस पुस्तक में बताया गया है कि पूर्व में महम शहर को ’दकोवा’ कहते थे। यह बहुत ही समृद्धशाली तथा वैभवशाली था। यहां एक सेठ हुए जिसका नाम गुरुशामल था। राजस्थान की जिला झूझनू की रानी सती का संबंध में महम से ही बताया गया है। इस पुस्तक में दादी तमोलदेह के अतिरिक्त दादी मुरथी तथा दादी गोमा का भी जिक्र है।

दादा नत्थु तालाब की होती है पूजा

यहां पर पूर्ण होते हैं अग्रवालों के संस्कार
इस स्थल पर महम के अग्रवाल के संस्कार पूर्ण होते हैं। बच्चे के मुंडन संस्कार तथा विवाह के तुरंत बाद यहां पर पूजा अर्चना के लिए अग्रवाल समाज के लोग यहां आते हैं। जो अग्रवाल देश के किसी अन्य भाग में जा बसे हैं, वे भी यहां आकर पूजा अर्चना करते हैं। नत्थू बाबा के नाम से एक छोटा सा तालाब है। यहां से पूजा अर्चना आरंभ की जाती है। पूजा अर्जना के लेकर अलग-अलग गौ़त्रों के अपने नियम व विधान भी हैं।
भादो की अमावश्या को लगता मेला
भादो की अमावश्या का यहां हर वर्ष भारी मेला लगता है। हजारों की संख्या श्रद्धालु यहां आते हैं। यह महम के अग्रवालों का एक बड़ा मिलन समारोह होता है। एक साथ चार भंडारे लगते हैं। गोयल, बंसल, मित्तल व तायल सभी अपने-अपने भंडारे आयोजित करते हैं।

झाड़ियों में दिख रहे हैं ऐतिहासिक तालाब के अवशेष

लुप्त हो रहा है ऐतिहासिक तालाब
रानी सती परिसर में एक ऐतिहासिक तालाब भी है। इस तालाब के सुंदर घाटों के अवशेष अभी भी बाकी हैं। अनिल राय गोयल ने बताया कि लाला माईदयाल ने एक बार इस तालाब का सौंदर्यकरण करवाया थां। फिलहाल अनदेखी के कारण यह तालाब अपना अस्तित्व खोने लगा है।
आधुनिक रूप देने का कर रहे हैं प्रयास
रानी सती विकास समिति के प्रधान विनोद कुमार का कहना है कि सती परिसर का आधुनिकरण किया जा रहा है। एक व्यवस्था विकसित की जा रही है। पेड़ लगाए जा रहे हैं। अग्रवालांे को इस स्थान के सौंदर्यकरण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। उनके प्रयासों के परिणाम भी आ रहे हैं।
अब इस परिसर के पास एक धर्मशाला भी बनी है। समिति के अपना कार्यालय कक्ष बन गया है। पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं। संभव है कि आने वाले समय में यह एक सुंदर व दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित हो।24c न्यूज/ इंदु दहिया 8053257789

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