फरमाणा खास के शहीद शुभाराम की पत्नी सत्तो देवी की अद्भुत जीवनगाथा

अभी महेंदी रचाने की उम्र भी नहीं हुई थी कि पति हो गए थे शहीद
पति की शहादत के छह माह बाद दिया था बेटी को जन्म
नहीं की दूसरी शादी, सम्मान और समर्पण का जीवन जीने वाली महिला को समर्पित है ये स्टोरी

इंदु दहिया
गांव फरमाणा के जुलाना बस स्टैंड की ओर सड़क से बस थोड़ा नीचे उतरते ही एक छोटा सा घर है। जिस पर लिखा है चौ. शुभाराम सहारण। शुभाराम सहारण तो इस घर में कभी नहीं रहा, लेकिन उनकी पत्नी ने इस घर में उनकी याद में पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। शुभाराम 1971 में शहीद में हो गए थे। उनकी पत्नी सत्तो देवी भी अब इस दुनिया में नहीं है। घर अब अक्सर बंद ही रहता है, लेकिन यहां आकर लगता है कि यह घर किसी मंदिर से कम नहीं है।

शहीदों की चिताओ पर तो मेले लग जाते हैं। उनको यथोचित सम्मान भी मिल जाता है, लेकिन शहादत से जुड़े कुछ ऐसे जीवन होते हैं, जिनका अक्सर हम जिक्र नहीं कर पाते हैं। जिक्र भी करते हैं तो बस इतना कि ये उनकी माता थी या पिता या पत्नी। किसी समारोह में सम्मान भर कर देकर औपचारिकता पूरी कर लेते हैं।
कभी-कभी कुछ ऐसे जीवन होते हैं जो किसी भी मायने में शहादत से कम नहीं होते। बल्कि सही मायने में कहा जाए तो कभी-कभी शहादत को समर्पित जीवन शहादत पर भी भारी दिखते हैं। ऐसा ही एक जीवन है गांव फरमाणा के शहीद शुभाराम की पत्नी सत्तो देवी का। शुभाराम की शहादत को भी हॉल में ही पहचान मिली है। गत 26 जनवरी को उनकी बेटी व परिवार को गांव के समाजसेवी महाबीर सहारण द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सम्मानित किया थां।
24c न्यूज की गत रविवार की संडे स्टोरी शुभाराम पर ही थी। किसी भी मीडिया समूह में शुभाराम के फोटो सहित ये पहली स्टोरी थी। शुभाराम की शाहदत्त की स्टोरी के दौरान जब सत्तो देवी के समपर्ण के बारे में जानकारी मिली तो 24c न्यूज ने उन पर अलग से एक स्टोरी करने का निर्णय लिया, जो उचित भी है।

शहीद शुभाराम (फाइल फोटो)

एक बार ही आए थे छुट्टी
सत्तो देवी फरमाणा खास के शुभाराम सहारण की पत्नी थी। शुभाराम 10 दिसंबर 1971 को भारत-पाक युद्ध के दौरान कच्छ क्षेत्र में शहीद हुए थे। जिस समय शुभाराम शहीद हुए थे, उस समय शुभाराम व उसकी सत्तो देवी की शादी को कुछ दिन ही हुए थे। शहीद शुभाराम शहादत से केवल लगभग डेढ़ साल पहले ही सेना की जाट रजिमेंट में सिपाही के रुप में भर्ती हुए थे। कुछ दिन बाद उनकी शादी सत्तो देवी के साथ शादी हो गई थी। शुभाराम की बेटी सुशीला देवी ने बताया कि शादी के बाद उनके पिता एक बार ही छुट्टी आ पाए थे। जिस समय उनके पति शहीद हुए उस समय सत्तो देवी उम्र केवल 18 साल ही थी।
तीन महीनें की थी गर्भवती
जिस समय शुभाराम शहीद हुए उस समय सत्तो देवी तीन माह की गर्भवती थी। उसके छह महीनें बाद उन्होंने एक बेटी सुशीला को जन्म दिया। उन्होंने दूसरी शादी नहीं करने का निर्णय लिया और अपने पति की याद व बेटी की परवरिश में पूरा जीवन लगा दिया।

फरमाणा में वह घर जहां सत्तो देवी रहती थी

गांव में ही रही
सुशीला देवी ने बताया कि उनके पिता की शाहदत्त के बाद कुछ दिन तक उसकी मां उसके मामा के यहां रही। सत्तो देवी नाथूवास की बेटी थी। उनके मामा पक्ष ने उनकी हरसंभव सहायता की। उनके मामा काफी समय तक उनके पास रहते भी थे।
उसके बाद सत्तो देवी गांव में ही रही। उनके पति की कुछ़ जमीन है। उसमें उन्होंने स्वयं किसानी की। खेत का सारा काम पुरुषों की तरह करती थी। सुशीला ने बताया कि वह खेतों में पानी स्वयं देती थी। भैंस भी रखती थी। बहुत ही निडर महिला थी।
ऐसे हुई थी शादी
शुभाराम के भतीजे सुनील ने बताया कि गांव में उनके ही परिवार में उनके एक चाचा की सगाई थी। नाथूवास से जब उनकी सगाई करने के लिए आए हुए थे तो शुभाराम का भी जिक्र हो गया। तब तक शुभाराम सेना में भर्ती हो चुके थे। बस उसी सगाई समारोह में शुभाराम की शादी भी सत्तो देवी के साथ तय कर दी गई थी।

अपने भाई के साथ सत्तो देवी (फाइल फोटो)

आठ महीनें पहले ही दुनिया को कह गई अलविदा
सत्तो देवी 11 जून 2021 को इस दुनिया को अलविदा कह गई। सुशीला ने बताया कि जिंदगी के अंतिम समय तक वो स्वस्थ्य थी। आखिर दिन उन्होंने कहा कि अब उनका उनके पिता अर्थात सत्तो देवी के पति के पास जाने का समय आ गया। कुछ दिन के मिलन के कारण ही उनके दिलो-दिमाग में उनके पति की छवि पूरी तरह बसी रही। वह लगभग 49 साल तक अपने पति की शक्ल के बारे में हू ब हू बताती रहती थीं। जबकि शुभाराम का कोई फोटो उपलब्ध नहीं था। शुभाराम का दो साल पहले ही फोटो उपलब्ध हुआ है। यह फोटो बरेली के सैनिक केंद्र से निकलवाया गया था। अब अपने नाती बेटी के बेटे को अपने पति की छवि जैसा बताती थी।
अब बेटियों को मिलेगा सत्तो देवी के नाम पर सम्मान
समाजसेवी महाबीर सहारण ने बताया कि गांव फरमााणा के अब तक के एकमात्र शहीद के सम्मान को बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास होंगे। उनके नाम पर गांव के स्कूल का नामकरण करवाया जाएगा। इसके अतिरिक्त ंशुभाराम के नाम पर गांव प्रतिभावान लड़के को तथा सत्तो देवी के नाम पर गांव की प्रतिभावान बेटी को पुरस्कार दिए जाने की परंपरा आरंभ की जाएगी। ताकि आने वाली पीढ़िया गांव के इस महान सपूत और उनकी वीरांगना पत्नी के बारे में जान सकें।

यह स्टोरी आपको कैसी लगी! आप अपनी प्रतिक्रिया कॉमेंट बॉक्स में जाकर अवश्य दें। आप अपनी प्रतिक्रिया व्हाटसेप नम्बर 8053257789 पर भी दे सकते हैं। आपकी प्रतिक्रिया हमे ऐसी स्टोरी करने की हिम्मत देगी तथा आपके सुझाव हमें और अधिक बेहतर कार्य करने के लिए प्रेरित करेंगे।

शहीद शुभाराम पर 24c न्यूज की खास स्टोरी पढ़ने के लिए क्लिक करें।

51 साल बाद पहचान मिली ’शहीद’ की ’शहादत’ को! अब तक गुमनाम रहा गांव फरमाणा का एकमात्र शहीद शुभाराम! 49 साल बाद बेटी ने फोटो में देखा अपने पिता का चेहरा! दिल को छू लेने वाली 24c न्यूज की एक खास संडे स्टोरी 
https://24cnews.in/farmana-k-shubharam-was-martyred-in-the-indo-pak-war-of-1971/

सौजन्य से

आज की खबरें आज ही पढ़े
साथ ही जानें प्रतिदिन सामान्य ज्ञान के पांच नए प्रश्न
डाउनलोड करें, 24c न्यूज ऐप, नीचे दिए लिंक से

Link: https://play.google.com/store/apps/details?id=com.haryana.cnews

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *