गेहूं की फसल पर ट्रैक्टर चलाता भैणीसुरजन का किसान

अब नष्ट नहीं करुंगा गरीबों को दूंगा

  • पूरा गांव मंडी में नहीं देगा गेहूं, वह भी नहीं देगा
  • कृषि कानूनों के विरोध में भैणीसुरजन के किसान ने की नष्ट फसल

कृषि कानूनों के विरोध में फसल नष्ट भी की और जरुरतमंदों को देने की घोषणा भी की। गांव भैणीसुरजन के किसान मंदीप पुत्र रणबीर ने गेहूं की साढ़े तीन एकड़ की खड़ी फसल को नष्ट कर दिया। शेष फसल का अधिकतर भाग वह गरीबों को दे देगा। लगभग साढ़े तीन एकड़ भूमि पर ट्रैक्टर चलाने के बाद मन्दीप ने अपना ट्रैक्टर रोक दिया। नष्ट गई फसल की भूमि को उसने पूरी तरह जोत दिया।

फसल को नष्ट करने के बाद अपने खेत में मन्दीप

मन्दीप का कहना है कि सरकार कृषि और किसान को नष्ट करना चाहती है। किसान भी इस आंदोलन के लिए तैयार हैं। मन्दीप का तो यहां तक कहना है कि उनका पूरा गांव इस वर्ष अनाज मंडी में गेहूं नहीं देगा। उन्होंने कहा कि कई अन्य किसान भी ऐसा ही करने वाले हैं जैसा उन्होंने किया है।

भाईचार बढ़ाना चाहते हैं

मंदीप का कहना है कि जिस भूमि की फसल को नष्ट किया गया है। वहां पशुओं के लिए चारा उगाएंगे। अतिरिक्त फसल को गांव के जरुरतमंदों को काटने के लिए कह देंगे ताकि गांव में भाईचारा और विश्वास बढ़े। आंदोलन में हर वर्ग उनके साथ आए।

दो एकड़ से भी कम का किसान है मंदीप

खास बात ये है कि लगभग तीस वर्षीय मंदीप कोई बड़ा जमींदार नहीं है। वह दो एकड़ से भी कम का किसान है। बाकी 25-30 एकड़ जमीन ठेके पर लेता है। ठेके जमीन से ही वह अपने परिवार को गुजारा चलाता है। उसकी पूरी जमीन में गेहूं की फसल है। इस बार धान की फसल अच्छी नहीं हुई बताई गई।

उठ चुका है सिर से पिता का साया

मंदीप के पिता का साया कई वर्ष पूर्व उसके सिर से उठ चुका है। उसकी मां सहकारी चीनी मिल में उसके पिता के स्थान पर क्लर्क की नौकरी करती है। एक बहन विवाहित है। उसके दो बच्चे हैं। मन्दीप का कहना है कि वह कृषि कानूनों से दु:खी है। उसका कहना है कि अगर ये कानून लागू हो गए तो किसानों की कृषि नहीं बचेगी। ज्यादा नुकसान छोटे किसानों को होगा।

खेत में उपस्थित किसान

30 हजार रुपए प्रति एकड़ दिया है ठेका

मन्दीप का कहना है कि उसने तीस हजार रुपए प्रति एकड़ में जमीन ठेके पर ले रखी है। अब तक ठेके से अतिरिक्त केवल गेहूं की फसल पर लगभग 20 हजार रुपए प्रति एकड़ खर्च आ चुका है। उसने गेहूं को ट्यूबवैलों के पानी से ही पकाया है। मन्दीप का कहना है कि ये नुकसान वह इसलिए सहन कर रहा ताकि आने वाली पीढ़ियों का कष्ट ना सहन करना पड़े और कृषि कानून लागू ना हों।

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