जीवन सत्य समझ आ आए तो पद, प्रतिष्ठा और दौलत का मोह नहीं रहता

क पिता चाहते थे कि उसका पुत्र राज दरबार की शोभा बढ़ाए। उसने अपने पुत्र को पूरी शिक्षा दीक्षा दिलवाई। उसे जब लगा कि वह राज दरबार के काबिल हो गया है तो पिता अपने पुत्र को राजा के पास ले गया। उसने राजा से कहा कि मेरा बेटा बहुत ही काबिल है। पूर्ण शिक्षित है। विद्वान है। आपके दरबार का हिस्सा बनने के लिए उपयुक्त है।

राजा ने कहा कि उसे एक साल बाद लेकर आना। पिता को लगा कि अभी कुछ कमी रह गई है। उसके पुत्र को कुछ और शिक्षा की जरुरत है। उसने एक साल तक फिर अपने पुत्र को शिक्षा दिलवाई। एक साल बीतने के बाद उसे फिर राजा के दरबार ले जाया गया।

राजा ने युवक से पूछा कि वो दरबार का हिस्सा क्यों बनना चाहता है।

युवक ने कहा कि आपके दरबार बाकी सब विद्वान तो हैं, लेकिन मुझे लगता है धार्मिक मामलों का विद्वान मैं बेहतर हूं। इसलिए मुझे आपके दरबार का हिस्सा बना लिया जाए।

राजा ने कहा कि जाओ पहले एक साल किसी फकीर के पास और रह कर आओ। फिर आना

युवक चला गया और एक फकीर के पास रहने लगा। पिता की जिद्द थी उसे राज दरबार का हिस्सा ही बनाना है।

एक साल बीतने के बाद उसका पिता उसे फकीर के आश्रम से लेने गया, तो युवक ने आने से मना कर दिया।

युवक ने कहा कि इस एक साल में उसे समझ आ गया है, उसके लिए इस आश्रम से उपयुक्त कोई जगह नहीं है। राजा के पास उसे कुछ नहीं मिलेगा।

इधर राजा को भी युवक का इंतजार था। युवक नहीं आया तो राजा स्वयं उसे लेने फकीर के आश्रम में चला गया। फकीर ने कहा कि आज यह युवक वास्तव में दरबार के योग्य हो गया है, जब राजा स्वयं उसे यहां लेने आएं हैं।

युवक ने राजा से भी इंकार दिया और कहा कि वह आश्रम में ही रहेगा। उसे राज दरबार का मोह नहीं रहा है।

जब जीवन का सत्य समझ आ जाता है तो पद प्रतिष्ठा और दौलत का कोई महत्व नहीं रह जाता।

~ओशो प्रवचन 

आपका दिन शुभ हो!!!!!

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