समर्पण हो तो ऐसा

एक गुरु अपने शिष्य से बेहद प्रेम करते थे उधर शिष्य भी गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे।
एक दिन यात्रा के दौरान एक पेड़ से एक फल उन्हें मिल गया। फल एक ही था, इसलिए उसे ही दोनों को
बांटना था।
गुरु ने फल को काटा और एक टुकड़ा
अपने शिष्य को दिया और पूछा
‘फल कैसा है’

शिष्य ने उसे खाया और कहा -‘खूब स्वादिष्ट है गुरु जी।’
गुरु जी ने फल का एक और टुकड़ा शिष्य को दिया। शिष्य ने उसे भी ले लिया और खा लिया। गुरु जी प्रेमवश शिष्य को फल के टुकड़े
देते गए, शिष्य बिना इंकार किए फल के टुकड़े को लेता गया।
आखिर में जब अंतिम टुकड़ा बचा तो वो भी शिष्य ने गुरु से मांग लिया। गुरु को अजीब लगा। ऐसा पहले होता नहीं था। उसका शिष्य अपने गुरु के लिए पूरे फल में से एक टुकड़ा भी ना छोड़े।
गुरु ने शिष्य को वो टुकड़ा नहीं दिया और खुद खाने लगे। फल बहुत कड़वा था।
गुरु जी ने शिष्य से पूछा ‘आपने ऐसा क्यों किया, इतने कड़वे फल को खाते रहे।’
शिष्य ने कहा- ‘गुरु जी आपके हाथ दिया फल था, कड़वा कैसे कह सकता था।’
‘और कड़वा था इसलिए आपको खाने कैसे दे सकता था। यही सोचकर फल के टुकड़े लगातार मांगता रहा।’
गुरु ने शिष्य को गले लगा लिया।
समर्पण हो तो ऐसा

आपका दिन शुभ हो!!!!!

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