केवल किताबें पढऩे से कोई ज्ञानी नहीं हो जाता
एक बार एक वृद्ध साधु के पास युवा सन्यासी आया। साधु हर शाम प्रवचन देता। युवा सन्यासी भी सुनता। धीरे-धीरे सन्यासी को साधु की बातों में रस आना बंद हो गया। सन्यासी ने सोचा साधु हर रोज वही बातें दोहराता है। कुछ नयापन नहीं होता। वह किसी और आश्रम में किसी और गुरु के पास जाने की योजना बनाने लगा।
उसी शाम उस आश्रम में एक और नया साधु आ गया। उस साधु ने उस शाम प्रवचन किया। वह गजब बोला। शास्त्रों और ग्रंथों की खूब बातें बताई।
युवा सन्यासी को इस साधु की बातों में खूब रस आया। वह उस साधु के प्रवचन के बीच में ही सोचने लगा क्यूं ना इस साधु के साथ जाया जाए। यह बहुत अधिक ज्ञानी है।
नए साधु ने जब अपने प्रवचन खत्म किए तो उसने वृद्ध साधु से पूछा, ‘कैसा रहा मेरा प्रवचन।’
वृद्ध साधु ने नए साधु से कहा, ‘आप अभी बोले ही कहा हैं, आप अपनी बात कहेंगे तो ही मैं अपनी प्रतिक्रिया दूंगा। अभी तो आप ने केवल शास्त्रों और ग्रंथों में लिखी और तुम्हारे द्वारा रटी गई कुछ बातें बताई हैं। पूरे प्रवचन में तुम कहां हों।’
तभी उस युवा सन्यासी को बोध हो गया जो वहां से जाने की सोच रहा था। उसने समझ लिया कि किताबों से लिए गए ज्ञान का वर्णन तो केवल रटे हुए शब्दों को उच्चारण मात्र होता है। किताबों की बातों का विवेकपूर्ण वर्णन व जीवन में पालन ही वास्तविक ज्ञान होता है।
युवा सन्यासी उसके बाद उसी आश्रम में रहा।
ओशो प्रवचन
आपका दिन शुभ हो!!!!!
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