फरमाणा के जितोहड़ी तालाब पर बने हैं सुंदर घाट

आज भी सौंदर्य की मिसाल है फरमाणा को जितोहड़ी तालाब

  • विश्राम स्थल के अतिरिक्त बने हैं जनाने और मर्दाने घाट भी

इंदु दहिया
कुए, धर्मशाला या अन्य सार्वजनिक स्थल पर उसके निर्माण से संबंधित शिलालेख का मिलना या फिर शिलालेख का स्थापित करना कोई नई बात नहीं है। लेकिन कहीं-कहीं ऐसी दुलर्भ व रहस्यमय जानकारियां मिल जाती हैं, जो न केवल उन स्थलों के निर्माण के बारे में जानने के लिए उपयोगी हो सकती हैं, बल्कि बुजुर्गो की समझ का भी उजागर करती हैं। हालांकि कई बार सपष्ट या दावे के रूप में तो कुछ नहंी कहा जा सकता, लेकिन ये जानकारियां रोचक जरूर होती है।

गांव फरमाणा के दक्षिण पश्चिम में स्थित जितोहड़ी तालाब के एक बुर्ज पर ईंटों से ही ’पांच’ खुदा है। यह पांच बुर्ज के एक आले में दिखाई दे रहा है। बुर्ज छोटी ईंटों का बना है। तालाब आज भी न केवल बहुत संुदर दिखता है, बल्कि उपयोगी भी है। गांव के पशुओं को यहां पानी पिलाने के लिए लाया जाता है। पानी भी साफ है। तालाब के घाट सुंदर व सुरक्षित हैं। तालाब की पूर्व दिशा में एक शानदार निर्माण हैं। इसमें विश्राम स्थल बने हैं। ग्रामीणों का कहना है कि ये ग्रामीणों के लिए नहांने की व्यवस्था भी थी। लखौरी ईंटों का यह निर्माण मुगलकालीन है।

जितोहड़ी तालाब लखोरी ईंटों से बना है पांच

ये मानना है ग्रामीणों का?

ग्रामीण सतवंत सिंह ने बताया कि नई पीढ़ी को कई दिन के बाद ही पता चला कि तालाब के बुर्ज पर पांच अंकित किया गया है। तालाब के निर्माण से संबंधित जानकारियों के आधार पर माना जा रहा है कि तालाब का निर्माण सन् 1905 में हुआ था, इसीलिए ये ’पांच’ लिखा गया है। अन्य उपलब्ध साक्ष्यों से भी यही लगता है कि इस तालाब का निर्माण 1905 के आसपास ही हुआ था।

सतवंत सिंह

इस तालाब को लेकर ये हैं दो दंत कथाएं हैं!

गांव के चंद्रभान साहरण द्वारा फरमाणा के हस्तलिखित इतिहास से जानकारी मिली है कि जितोहड़ी तालाब के निर्माण से संबंधित दो दंतकथाएं गांव में प्रचलित हैं।

एक दंत कथा के अनुसार फरमाणा का दासाण पाना जब इस तालाब को खुदवाने लगा तो गांव के ही एक समुदाय विशेष ने इस जमीन पर अपना दावा करते हुए मुकद्दमा कर दिया थां। इस मुकद्दमें में दासाण पाना की जीत हुई थी, इसलिए इस जमीन को जीता हुआ मान लिया गया। जिससे इस तालाब का नाम जीता हुआ अर्थात जितोहड़ी पड़ा।

दूसरी दंत कथा के अनुसार जब यह तालाब खोद कर तैयार किया गया तो इसमें नीचे से बालू रेत निकल आया। जिससे तालाब का पानी जल्द सूख जाता था। पानी जल्द सूखने को ग्रामीण ’जी’ तोड़ना कहते थे। जिससे इसका नाम ’जी’ तोड़ी’ पड़ गया।

खुसी टोकणी, खुद्या जितोहड़ी

ग्रामीण संतवंत ने बताया कि बजुर्ग बताते थे कि इस तालाब में गांव के बनिया वर्ग का बड़ा योगदान था। कहा जाता है कि किसी दूसरे तालाब में पानी भरते गई दासाण पाना की किसी महिला की टोकणी को खोस अर्थात छीन लिया था। जिससे यह तालाब खोदने का निर्णय लिया गया। आज भी गांव में कहावत प्रचलित है। खुसी टोकणी, खुद्या जितोहड़ी।

आज के दौर में जब तालाबों का महत्व दिनों-दिनों कम हो रहा है। अधिकतर ऐतिहासिक तालाब नष्ट होने की कगार पर हैं। कई तो अपना अस्तित्व ही खो चुके हैं। जो बचे हैं उनमें गंदा पानी जमा है। अवैध कब्जों का शिकार हो गए हैं या हो रहे हैं।

ऐसे में गांव फरमाणा के दासाण पाना के इस तालाब को देखकर सुखद अहसास होता है। तालाब को सौंदर्य भी बरकरार है और उपयोगिता भी।

फरमाणा तालाब का बरकरार है सौंदर्य 

इंदु दहिया/24c न्यूज /8053257789

सौजन्य से

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