सारंगी की धुनों को आज भी दिल से छेड़ते हैं मामन खान

इनकी सारंगी के सुरों के दीवाने थे महान सांगी ’धनपत निंदाना’ वाले

  • इनके पूर्वजों ने ही रखवाएं थे ’रागों’ पर जींद के गांवों के नाम
  • इनकी पीढ़ी आज भी जिंदा रखे हैं संगीत की विरासत को
  • 74 वर्षीय मोमिन खान पर  पर खास रिपोर्ट

ऊंगलियां जब ’सारंगी’ की ओर चलती हैं तो जैसे सारंगी भी नाच उठती है। उम्र के पड़ाव ने बेशक शरीर को कमजोर कर दिया है लेकिन सारंगी आज भी घंटो बजा लेते हैं। सुरों का ऐसा साधक जिसे राष्ट्रपति और राज्यपाल से सम्मान मिल चुका है। जिसकों हाथों से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पगड़ी सज चुकी है। जो दुनिया के सात से ज्यादा देशों को सारंगी की धुनों से गूंजा चुका है।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बांधी थी पगड़ी

संगीत साधना की महान विरासत के ऐसे हस्ताक्षर जिसके धुनों के दीवानें थे महम चैबीसी के महान सांगी धनपत सिंह निंदाना वाले भी। 24c न्यूज की आज की संडे स्टोरी एक ऐसे संगीत साधक की स्टोरी है, जिसकी संगीत तपस्या को सब प्रणाम करते हैं।

मैं हूं तो सारंगी है

जिला हिसार के गांव खरक पूनिया के 74 वर्षीय मामन खान गांव में ही अपने पैतृक घर में रह रहे हैं। 24c न्यूज की टीम जब उनके घर गई तो लगा कि अब सारंगी तो कहां बजा पाते होंगे। काफी थके हुए से लग रहे थे। ऐसे ही पूछ लिया कि अब भी आपके पास सारंगी हैं क्या? ये सवाल उन्हें शायद अच्छा नहीं लगा। झट से बोलें, ‘मैं हूं तो सारंगी भी हैं।’ और फिर सारंगी पर भावविभोर कर देने वाली धुनें सुनाई। उनकी उँगलियों को छूने से पता चलता है कि कितनी बार सारंगी की तारों ने उनको जख्मी किया होगा।

सारंगी की तारों को खुद ही अब सैट कर लेते हैं मामन

ये मिल चुके हैं सम्मान

वैसे तो मामन खान को कई सम्मान मिल चुके हैं, लेकिन मुख्य रूप से उन्हें संगीत नाट्य एकेडमी का राष्ट्रपति द्वारा सम्मान मिल चुका है। हरियाणा सरकार उन्हें संगीत कला रत्न का पुरस्कार दे चुकी हैं। प्रदेश की अधिकतर राज्य सरकारों तथा अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी वे सम्मानित हो चुके हैं। अंग्रेजी की प्रतिष्ठित मैगजीन ’दा वीक’ के जून 2004 के अंक के कवर पेज पर मामन खान अपनी सारंगी के साथ छप चुके हैं। मामन खान हरियाणवीं फिल्म ’बहु बटवा सी’ तथा हिंदी फिल्म ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ में भी सारंगी बजा चुके हैं। मामन खान हरियाणा के लोकसंपर्क विभाग में भी नौकरी कर चुके हैं। सांगों में सारंगी बजा चुके हैं। विशेषकर वे महम चैबीसी के धनपत को बहुत याद करते हैं। उनका कहना है कि धनपत उनकी सारंगी को बहुत पसंद करते थे।

संगीत से श्रेष्ठ पुरस्कार मिल चुके हैं

मामन के पूर्वजों ने रखवाए थे रांगों पर गांवों के नाम

जींद के आसपास के गांवों की संगीत की दुनिया में बहुत अधिक चर्चा होती है। शायद ये देश दुनिया में अकेले ही जिले में एक साथ ऐसे गांव हैं जिनके नाम रागों पर हैं।

मामन खान कहते हैं कि उनके पूर्वज राजा जींद के दरबार में संगीतकार थे। उन्होंने ही राजा से कह कर जींद के गांवों के कई गांवों के नाम रागों पर रखवाए थे। मामन खान के पास आज भी सौ साल पुरानी सारंगी है, जिसे उनका बेटा राजेश बजाता है।

सौ साल पुरानी सारंगी के साथ मोमिन खान का पोत्र राजेश

ये गांव हैं रांगों के नाम पर

मामन खान ने बताया कि जींद में राग ’मल्हार’ पर गांव मल्हार, राग कुड़कली पर गांव कुड़कली तथा राग ’श्रीराग’ पर श्रीराग खेड़ा,  ’सिंधवी’ पर गांव सिंधवी, ’पीलू’ पर पीलू खेड़ा, ’ जैजवंती’ पर जैजवंती, ’ भैरव’ पर भैरव, तथा ’ललित’ पर गांव ललित हैं। मामन खान ने बताया कि उनके बड़े नत्थू खान तथा कूड़ा खान हुए। ये भी जींद दरबार में संगीतकार थे। कुड़ाराम के पीरमौज हुए और पीर मौज के हुए मोमिन खान।

मामन खान के पांच बेटे हैं जिनमें से चार संगीतकार है। राजेश सारंगी बजाता है। राजेश का बेटा अमन भी सारंगी बजाता है। राकेश तबला बजाता है। राममेहर नगाड़ा बजाता है। राजेंद्र ढोलक बजाता है। मोनू सारंगी बजा तो लेता है लेकिन वह व्यवसायिक रूप से सारंगी नहीं बजाता। कुछ और काम करता है।

नए दौर के संगीत से दुःखी हैं मामन खान

मामन खान का कहना है कि जो संगीत आज परोसा जा रहा है वह पाश्चात्य है। उसमें संगीत की शांति और उमंगें नहीं है। बस तड़क फड़क है। यहीं कारण है कि आज का गाना ज्यादा दिन तक नहीं चलता।

सूफ़ी संगीत के गहन साधक

मामन खान कहते हैं उन्होंने सूफी महफिलों में खूब सारंगी बजाई है। सूफी संगीत सीधा परमात्मा से जोड़ता है। सूफ़ी संगीत अन्य संगीतों से ज्यादा गहरा और आनंददायी होता है। उन्होंने अमीर खुसरो के एक गीत की धुन भी बजाई। उनका कहना है कि वे गाते नहीं बस सारंगी पर धुन बजाते हैं।

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