हर वीरवार को लगता है मेला, झुकाता है पूरा गांव शीश!
संत महात्मा आकर ठहरते थे इस स्थल पर
इंदु दहिया
गांव फरमाणा के मुख्य बस स्टैंड से कुछ मीटर ही गांव की ओर चलते हुए स्कूल के सामने एक दर्शनीय एवं शानदार धार्मिक स्थल है। दो पंचायतों के इस गांव में चाहे जितने भी गुट भी हो! राजनैतिक विचारधाराएं हों। जात-बिरादरियां भी कई हैं। ये एक ऐसा गांव हैं जहां आज भी मुस्लिम परिवार भी रहते हैं। अगर इस पूरे गांव को कोई एक स्थल जोड़ता है तो वह यहीं स्थल है। गांव में इसे ’पुरसिद्ध’ ’पुरीसिद्ध’और ’दादा पुरसद’ आदि कहा जाता है। सब मिलते जुलते नाम ही हैं। यह स्थल सैकड़ों साल से गांव की आस्था का केंद्र है। यहां आने वालों में हिंदु भी होते हैं और मुस्लिम भी। यहां आकर भी हिंदु ’हिंदु’ ही रहता है और मुस्लिम ’मुस्लिम’ ही। बस आस्था और विश्वास की एक ज्योत जलाता है जो धर्म, जाति और सम्प्रदाय से ऊपर होती है।
हरियाणा के अधिकतर बड़े गांवों में खेड़े, मंदिर या अन्य कोई ना कोई ऐसे स्थल होते हैं जहां निर्विवाद रूप से पूरा गांव श्रद्धा व सम्मान रखता है। फरमाणा का यह स्थल इसलिए खास है कि समय के साथ-साथ न केवल इस स्थल की मान्यता बढ़ती जा रही है, बल्कि भव्यता भी नया आकार ले रही है।
ये कहना है ग्रामीणों का इतिहास के बारे में
अगर फरमाणा के बाबा पुरसिद्ध के इतिहास की बात की जाए तो ग्रामीण इसके बारे में अलग-अलग कहानियां बताते हैं। सब कहानियों को यदि मिला लिया जाए तो एक बात साफ है कि स्थल पर कम से कम दो-सौ तीन सौ साल पहले से गांव की आस्था का स्थल है। यहां किसी समय में आध्यात्मिक रूप से एक सिद्ध महात्मा रहा है।
इस स्थल के साथ एक तालाब था। साथ में ही एक पीर था। कुछ साल पहले तक यह इलाका वीरान सा था। इस स्थल का प्रबंधन देखने वाली समिति के प्रधान अजीत सिंह ने बताया कि 70 के दशक में जब वे पढ़ते तो एक महात्मा जिसका नाम चंभा नाथ था। वह अक्सर इस स्थल पर आता था और काफी समय तक यहीं बैठा रहता था। समाजसेवी महाबीर सहारण ने भी बताया कि उन्होंने भी यहां महात्माओं को आते हुए देखा है।
कहानी एक गडरिए की भी है
ग्रामीणों ने बताया कि इस स्थल पर गडरिए बहुत आते हैं। कहते हैं कि किसी गडरिए की आंखे चली गई थी। इसी स्थल पर आकर उसकी आंखे ठीक हुई थी। तब से गडरियों के परिवार यहां हर आकर पूजा अर्चना करते हैं। कलिंगा से भी यहां आकर पूजा अर्चना की बात कही गई है।
मजार को नहलाने की लगती है होड़
इस स्थल के प्रति युवाओं की भी खास श्रद्धा है। ग्रामीणांे की मान्यता है कि जल्द सुबह दादा पुरसिद्ध की मजार को नहलाने से मनोकामना पूरी होती है। नहलाने का संकल्प पूरे महीनें के लिए लिया जाता है। यह भी कहा जाता है कि यहां झाडू चढ़ाने से मस्से ठीक होते हैं। अजीत सिंह ने खुद के मस्से ऐसे ठीक होने का दावा किया। अजीत सिंह का कहना है कि वह इस प्रकार के चमत्कारों और धार्मिक स्थलों में विश्वास नहीं रखता था, लेकिन जब यहां जाने से उसके मस्से ठीक हुए तो इस स्थल के प्रति उसकी श्रद्धा बढ़ गई। मजार पर चादर चढ़ाई जाती है साथ ही गुड़ का चढ़ावा भी चढता है। हालांकि प्रसाद में अब अन्य मिष्ठान भी चढ़ाए जाते हैं।
गांव से चले गए परिवार भी आते हैं यहां
गांव से बाहर रहने लगे परिवार भी अपने धार्मिक अनुष्ठान यहीं आकर पूरे करते हैं। 24c की इस स्थल पर यात्रा के दौरान एक परिवार मिलता है। चांदकौर का यह परिवार गत बीस वर्षों से बहादुरगढ़ में रहता है। इसके बावजूद इस परिवार का हर अनुष्ठान यहीं आकर पूरा किया जाता है। चांदकौर के बेटे मनीष ने नई गाड़ी ली थी। तो यह परिवार दर्शानार्थ यहां आया हुआ था।
गांव की समिति देखती है व्यवस्था
इस स्थल की व्यवस्था बनाने के लिए गांव ने एक समिति बना रखी है। इस समिति का नाम जय बाबा पुरीसिद्ध सेवा धाम समिति फरमाणा है। समिति के प्रधान अजीत सिंह व उनके साथी जयसिंह ने बताया कि पिछले कुछ समय से इस स्थल का सौंदर्यकरण तेजी से किया जा रहा है। इस स्थल के आसपास से अवैध कब्जे हटवाए गए हैं। यहां स्थायी रूप से एक सेवक की व्यवस्था की गई है। सीसीटीवी कैमरे लगवाएं गए हैं। नए गेट बनवाए गए हैं। किसी से कुछ मांगने की जरुरत नहीं पड़ती, बाबा की कृपा से सब हो रहा है।
हैंड पंप का पानी है मीठा
गांव फरमाणा के कुओं का पानी खराब हो चुका है। गांव में किसी अन्य स्थल पर हैंडपंप भी कामयाब नहीं है। खासबात यह है कि बाबा पुरसिद्ध स्थल पर लगे हैंडपंप का पानी बहुत अच्छा है। पूरा दिन इस हैंडपंप पर पानी भरने के लिए भीड़ लगी रहती है। सुबह-शाम तो लाइन लग जाती है।
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