परम आनंद पाने में नहीं, छोड़ने में है
एक गरीब शिष्य इस बात को लेकर बेहद परेशान था कि वो शिक्षा के उपरांत अपने गुरु को गुरु दक्षिणा में भेंट नहीं दे पाया। हालांकि उसके गुरु की उससे भेंट की कोई अपेक्षा नहीं थी।
युवक ने किसी से सुना कि वहां का राजा दानवीर है। सुबह उसके पास कोई भी पहला याचक आता है तो राजा उस याचक को मुंह मांगी भेंट दे देता है।
युवक सुबह जल्दी राजा के आने से पहले ही महल के बगीचे के द्वार पर जा बैठा। राजा ज्यों ही सुबह बाहर आया युवक ने कहा ‘महाराज मैं आज का पहला याचक हूं।’
राजा कहा है ‘जी हां आप आज के ही नहीं मुझे तो अब तक के पहले याचक लगते हो। बोलो क्या मांगना है। जो भी मांगोगे। वो मिलेगा।’
अब युवक का दिमाग घुमने लगा। उसे सोचा कुछ ज्यादा मांग लूं। युवक संशय में पड़ गया।
राजा ने कहा ‘शायद सोच कर नहीं आए। मैं बगीचे का एक चक्कर लगा लूं तब तक सोच लो।’
अब युवक दिमाग से गुरु की पांच अशर्फियां निकल चुकी थी। गणित शुरु हो गया था। वो सोचने लगा क्यूं नहीं करोड़ो, अरबों अशर्फियां मांग लूं।
लोभ जब पैर पसारता है पाने की इच्छा असीम हो जाती है।
राजा बगीचे का चक्कर लगा कर आया तो युवक ने राजा से कहा ‘आप जो पहने हैं उन्हीं कपड़ों में बाहर निकल जाओ। जो भी आपका है वो सब मेरा। आपने मुझे वचन दिया है।’
राजा खिलखिला कर हंसा। उसने कहा-‘ हे भगवान आपका लाख-लाख शुक्र है, जिस आदमी की मुझे तलाश थी वो मिल गया।
राजा ने युवक से कहा ‘सभी वस्त्र क्यूं, मेरे लिए तो एक ही वस्त्र काफी है। आपकों कभी पछतावा ना रहे कि मैने राजा के पास उसके कीमती वस्त्र क्यूं छोड़े।’ राजा ये कह कर वस्त्र उतारने लगा।
युवक फिर संशय में पड़ गया। देने वाले की देने की इच्छा प्रबल हो तो मांगने वाला दुविधा में पड़ जाता है।
युवक ने राजा से कहा ‘आप बगीचे का एक चक्कर और लगा आएं। मैं कुछ और सोचना चाहता हूं। राजा एक चक्कर और लगाने गया। वापिस आया तो युवक नहीं था।’
युवक की समझ में आ चुका था। परम सुख मान, सत्ता और दौलत में नहीं हैं, ऐसा होता तो राजा छोड़ता ही क्यों?