मनुष्य की इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती
एक दिन एक फकीर ने एक बादशाह के सामने भीक्षा पात्र फैलाया और कहा,
‘सुना है, आप पहले सुबह पहले भीक्षु को मुंह मांगा दान देते हैं, क्या मुझे भी देंगे। आज सुबह मैं पहला भीक्षु हूं।’
बादशाह को फकीर का प्रश्र पुछना ही अच्छा नहीं लगा। उसने कहा,
‘आपको कोई शक है, कि मैं मुंह मांगा दान नहीं दूंगा।’
‘फकीर ने कहा, नहीं महाराज, शक नहीं है। बस ऐेसे ही पूछ लिया। ऐसा करों, मेरा ये भीक्षा पात्र भर दो।’
बादशाह हंसा और कहा, ‘इतने छोटे से भीक्षा पात्र को भरने पर ही आपको मुझ पर शक हो गया।’
बादशाह ने फकीर के भीक्षा पात्र को तुरंत भरने के आदेश दिए।
खजाने से धन आता गया। भीक्षा पात्र में डाला जाता रहा। लेकिन पात्र नहीं भरा।
आखिर खजाना खाली होने लगा, लेकिन भीक्षा पात्र नहीं भरा।
सब दरबारी, वजीर हैरान और राजा परेशान।
आखिर राजा ने फकीर के पैर पकड़ लिए और कहा
‘महाराज बताओ ये क्या मामला है। भीक्षा पात्र क्यों नहीं भरता। ये कैसा चमत्कार है।’
फकीर ने कहा, राजन्, ये भीक्षा पात्र मनुष्य की खोपड़ी है। जो कभी नहीं भरती। एक इच्छा पूरी होते ही दूसरी बलवती हो जाती है, इसलिए ये कभी नहीं भरेगी।
अज्ञात
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