ज्ञान का घमंड नहीं, उपयोग करें

एक बार एक मल्हा एक विद्वान को नाव से नदी पार करवा रहा था। विद्वान कई भाषाओं और विषयों का जानकार था, उसे अपनी विद्वता पर घमंड भी था। उसने मल्हा से पूछा कि आपने इतिहास पढ़ा है। मल्हा ने कहा, ‘जी नहीं पढ़ा।’
‘तो भूगोल तो पढ़ा होगा।’
मल्हा ने कहा, ‘साहब, नहीं पढ़ पाया।’
विद्वान ने इस बार पूछा-‘अरे कुछ किताबें तो पढ़ी होंगी।’
मल्हा ने कहा-‘नहीं साहब मैं तो बिल्कुल अनपढ़ हूं, कुछ नहीं पढ़ा।’
उस विद्वान व्यक्ति ने व्यंग्यात्मक हंसी हंसी और कहा, ‘तभी तो दिनभर नाव चलाता है।’
मल्हा को बुरा तो बहुत लगा, लेकिन वह चुप रहा।
अचानक तेज आंधी तुफान आ गया। नाव पलटने लगी। इस बार बारी मल्हा की थी।
मल्हा ने पूछा, ‘साहब तैरना आता है।’
विद्वान ने कहा, ‘नहीं।’
मल्हा ने कहा ‘तो तुम्हारा इतिहास, भूगोल और किताबें अब कोई काम नहीं आएंगी। तुम्हें सिर्फ पढ़ना आता है, तैरना नहीं। मुझे पढ़ना बेशक नहीं आता, लेकिन तैरना आता है। पार उतर जाऊंगा। आपका डूबना तय है।’
ज्ञान वह होता है जो विपति में काम आता है और ज्ञान का घमंड नहीं करना चाहिए।

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