मिट्टी के दीए

मिट्टी के दीए अधिक बिकने की उम्मीद में है दीए बनाने वाले

वक्त के साथ कम होती गई मांग
24सी न्यूज, विशेष

इस बार मिट्टी के दीए बनाने वालों के हाथ मिट्टी को एक नई उम्मीद के साथ ‘मथ’ रहे हैं। बदले हालातों में दीवाली से चाइनीज प्रभाव कम हो सकता है। ऐसे में लगता है मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ जाए। दीयों के अतिरिक्त कुल्हड़, व्रतों के लिए करवे व तुंबड़ी आदि भी बनाई जा रही हैं। चीन के सामान के विरुद्ध जागरुकता बढ़ी है। साथ ही सरकार भी स्वदेशी को बढ़ावा दे रही हैं। संभव है इसका असर इस बार की दीवाली पर दीखे। लेकिन मिट्टी के दीए बनाने वाले इन परिवारों की अपनी परेशानियां हैं, जिन्हें वे व्यक्त करते हैं
मिट्टी मिलनी मुश्किल हो रही है
मिट्टी के बर्तन व दीपक बनाने के पुश्तैनी धंधे में लगे शीशराम ने बताया कि मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए काली मिट्टी की चाहिए होती है। आजकल यह मिट्टी बहुत कम मिल रही है। विशेषकर महम में इस मिट्टी का संकट है। नजदीक के एक गांव से जहां से मिट्टी लाते थे, वो भूमि किसी की मलकियत है। वहां से अब मिट्टी नहीं उठाने दी जा रही। बड़ी मुश्किल से मिट्टी की व्यवस्था करनी पड़ती है।

बन रहे हैं मिट्टी के दीपक

पूरे परिवार का हिसाब लगाएं तो नहीं निकलती मजदूरी
दीए बनाने में पूरा परिवार रात-दिन लगता है। एक छोटा दीया एक रुपए का बेचा जाता है। इसी प्रकार आकार तथा वस्तुके आधार पर कीमत निर्धारित है। अगर पर्याप्त मात्रा में सामान ना बिके तो मिट्टी लाने, मथने, पकाने तथा बेचने की प्रक्रिया का खर्च भी पूरा नहीं होता।
पकाना होता है मुश्किल
तेजभान प्रजापत ने बताया कि पहले खुले मैदान होते थे। मिट्टी के बर्तन व दीए पकाने के लिए आसानी से स्थान उपलब्ध होता था। आजकल भीड़ बढ़ गई है। दीए व बर्तन पकाने के लिए स्थान ही नहीं मिलता। बस्ती में धूआं फैलने पर पड़ोसी ऐतराज करते हैं। कई बार विवाद भी हो जाते हैं।

पूरा परिवार करता है सहयोग

सरकार दे सहायता

राजेश कुमार ने कहा कि कई स्थानों पर सरकार की ओर से मिट्टी के बर्तन बनाने वालों को मिट्टी मथने तथा चॉक आदि के लिए सहायता दी गई है। महम में यह सहायता नहीं मिली है। यहां भी यह सहायता मिलनी चाहिए। साथ ही मिट्टी उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की जाए।
स्वस्थ्य एवं पर्यावरण के लिए हैं उपयोगी
मिट्टी के बर्तन स्वस्थ्य के लिए उपयोगी हैं। बर्तन व दीए पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं। जबकि लडिय़ां तथा अन्य बिजली संचालित सजावटी सामान जहां ऊर्जा की खपत बढ़ाते हैं वहीं पर्यावरण की दृष्टि से भी बेहतर नहीं हैं।

यहां भी बन रहे हैं दीपक

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