दशहरे के दिन बनते थे रावण, इसी नाम से हो गए मशहूर
रामलीला में कभी रावण नहीं बने मदनलाल वधवा
पार्षद भी रहे है वधवा
24सी न्यूज
साल में एक दिन रावण बनते थे, वो भी दो-तीन घंटों के लिए। रौब और अभिनय ऐसा कि बाजारों में रावण की सवारी देखने की भीड़ लग जाती थी। साल के एक दिन के कुछ समय में ही अंदाज और अभिनय की ऐसी छाप छोड़ी कि लोग इनका असली नाम की नहीं लेते। बस रावण और लंकेश ही कह कर पुकारते हैं। मदनलाल वधवा भी अपने इस नाम का आनंद लेते हैं।
मदनलाल वधवा ने वैसे तो मूर्ख मंडल रामलीला में बहुत वर्ष पहले ताडक़ा का अभिनय किया था, लेकिन एक सिर्फ एक बार। उसके बाद लगभग 1988 से दशहरे के दिन रावण दहन के लिए रामा क्लब से निकलने वाली रावण की सवारी के वे रावण बनने लगे। बस फिर क्या था इनके साथ-साथ महम तथा आसपास के लोगों को भी इस सवारी का इंतजार रहता। वधवा 2012 के बाद तक दशहरे के दिन रावण बने।
टूट गया था रथ
मदनलाल अपनी रावण की सवारी के लिए भिवानी से घोड़ों से खिंचने वाला रथ लाते थे। उस में बड़े खास अंदाज में अपनी सवारी निकालते। इस रथ में भीड़ बढ़ जाती थी। एक बार रथ टूट गया था। रथवान को उसकी कीमत देनी पड़ी थी।
रोने लग गया था पुत्र
उनका पुत्र भी उन्हें रावण के नाम से ही जानता था। एक बार वह जब छोटा था तो रावण दहन देखने गया हुआ था। जैसे ही रावण के पुतले को आग लगाई गई तो लोग कहने लगे रावण को फूंक दिया। ऐसा सुनते ही उसका बेटा रोने लगा और अपने पापा से मिलने की जिद्द करने लगा। अपने पापा से मिलने के बाद ही वह चुप हुआ।
पार्षद भी रहे
मदनलाल वधवा तीन योजना पहले अपने वार्ड से पार्षद भी रहे। उसके बाद उनकी पत्नी भी इस वार्ड से पार्षद रही। वधवा समाजिक कार्यों में भी रुचि रखते हैं।