आंखें, पूंछ और खुर भी होते हैं सुनहरे
भारतीय संस्कृति में रखती है विशेष महत्व
देखने में बहुत सुंदर होती है ये गाय
कहते हैं भगवान का मानव को उपहार है ये गाय
चिकित्सकों का कहना है-होती है विशेष नस्ल
गाय का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। गाय के दूध से लेकर मूत्र और गोबर तक का चिकित्सीय प्रयोग गाय को आम जनमानस के लिए उपयोगी बनाता है। यही कारण है कि गाय को यहां माता का दर्जा प्राप्त है। वैसे तो भारत में गायों की कई नस्ले हैं। हर नस्ल की अपनी उपयोगिता तथा विशेषता है। लेकिन कपिला गाय को सीधा देव लोक से जोड़ा जाता है। गाय के पालक परमजीत उर्फ सोनू की मानें तो महम चौबीसी के गांव सीसर खास में उसकी गाय कपिला गाय है।
सोनू का कहना है कि वह लगभग ढ़ाई साल पहले इस गाय को लेकर आया था। उसे नहीं पता था कि यह गाय कपिला है। अब पता चला है। सोनू का कहना है कि धाार्मिक मान्यता के अनुसार समुंद्र मंथन के बाद जो रत्न मानव को प्राप्त हुए उनमें कपिला गाय भी शामिल थी। कई जगह इस गाय की आरती भी होती है। सोनू का कहना है कि अब यह गाय हमारे परिवार का हिस्सा है। कई लोगों ने अच्छी कीमत पर इसे खरीदने की बात की है, लेकिन वे इसे बचेंगे नहीं।
ऐसी दिखती है कपिला
यह गाय दिखती सफेद और सुनहरी है। शरीर पर हाथ फेरों तो मानों मखमल है। सींग, खुर, पूंछ यहां तक कि आखों की पुतलियां भी काली नहीं हैं। सुनहरी हैं। शरीफ इतनी की बच्चे ऐसे खेलते हैं जैसे झूला हो। पूरा दिन गली के बच्चे इस गाय आसपास ऊपर नीचे खेलते रहते हैं।
अपने मुंह से खोल लेती है रस्सा
समझदार इतनी है कि अपने मुंह से ही अपनी रस्सी खोल लेती है। बिना न्यायने के दूध देती है। दूध देते हुए किसी भी प्रकार की शरारत नहीं करती। घर के हर एक सदस्य और गली के बच्चों को अच्छे से जानती और पहचान लेती है।
क्या कहते हैं पशु चिकित्सक
पशु चिकित्सक डा. प्रदीप ने इस गाय का फोटो देखते ही कहा कि यह कपिला ही है। इस गाय को कपिला के अतिरिक्त गौरी या भूरी गाय भी कहा जाता है। डा. प्रदीप के अनुसार यह गाय मूल रूप से कर्नाटक की एक नस्ल है। जो उत्तर भारत में दुलर्भ है।
श्रेष्ठ होता है दूध
डा. प्रदीप का कहना है कि इस गाय की दूध की मात्रा ज्यादा नहीं होती, लेकिन इसका दूध लाभकारी बहुत होता है। इसके दूध में बीटा कैरोटीन की बहुत अधिक मात्रा होती है, जो विशेषकर बच्चों के मानसिक विकास हेतूृ श्रेष्ठ व प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला होता है।