यह भी बीत जाएगा

कहते है एक बार एक राजा ने अपने विद्वानों से कहा कि वे कोई एक ऐसा छोटा सा सूत्र तैयार करें, जिसमें सभी शास्त्रों और ग्रंथों का निचोड़ हो। जो हर परिस्थिति में सही राह दिखाए। विद्वान मुश्किल में पड़ गए। कोई उपाय नहीं सूझा। आखिर एक गांव के पास ही रह रहे एक वृद्ध फकीर के पास गए और राजा के आदेशों के बारे में बताया।
फकीर राजा के पास आया और उसने अपनी अंगूठी राजा को दे दी। उसने कहा कि इस अगूंठी के नगीने के नीचे एक कागज का टुकड़ा रखा है और कागज पर एक सूत्र लिखा है। यह अगूंठी मुझे मेरे गुरु ने दी थी हालांकि मुझे कभी इस सूत्र की जरुरत नहीं पड़ी। याद रखना यह सूत्र केवल तभी पढऩा जब बाकी सब उपाय असफल हो जाएं। कोई अन्य उपाय ना रहे। राजा सहमत हो गया।
एक बार एक युद्ध में राजा पराजित हो गया। दुश्मन राजा के सैनिक उसके पीछे दौड़ रहे थे। वह पूरी ताकत से बचने के लिए अपना घोड़ा दौड़ा रहा था। संकट की इस घड़ी में अचानक उसे अंगूठी में छूपे सूत्र की याद आई। एक चट्टान के पीछे छूप कर उसने अंगूठी के नगीने के नीचे से कागज का टुकड़ा निकला।
उस पर लिखा था-यह समय भी बीत जाएगा।
हुआ भी ऐसा ही। दुश्मन के सैनिकों से राजा ओझल हो गया। दुश्मन के सैनिक किसी अन्य दिशा में चले गए। राजा ने फिर अपने सैनिकों को संगठित किया और हमला किया। राज हासिल कर लिया। लेकिन राजा इस बार अधिक धार्मिक और सदाचारी था। घमंडी नहीं था। कहता रहता-
समय एक जैसा नहीं रहता-वह नहीं रहा तो यह भी नहीं रहेगा-बीत जाएगा।

ओशो प्रवचन

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