‘इंसा’ की इंसानियत ने बचाया था महम को सांप्रदायिकता की आग से
इंसा ने मस्जिद की चौखट पर सिर रखकर रोका था खून खराबा
बड़े दंगों का शिकार होने से बच गया था महम
बजा था बटवारें के समय मौत का नगाड़ा
1947 में हुए भारत-पाक विभाजन ने आजादी के जश्र को फीका कर दिया था। गुलामी के बाद आजादी ने खुशी तो दी, साथ ही बटवारे ने कुछ ऐसे दर्द भी दिए जो आज तक रिस रहे हैं। देश के कई भाग दंगों की आग में झुलसे थे, लेकिन महम ऐसा इलाका रहा जहां उस समय कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ था। जबकि यहां से बहुत अधिक संख्या में मुस्लिमों ने पाक प्रस्थान किया था।
हालांकि सांप्रदायिक दंगों के हालात ऐसे बन गए थे, लेकिन इंसा नाम के एक मुस्लिम ने इस धरती को रक्तरंजित होने से बचा लिया।
इसां ने रात के समय भड़कने वाले दंगों को रोका था। ऐसा नहीं हुआ होता तो बटवारें के काले इतिहास के खूनी पन्नों में महम का नाम भी दर्ज हो जाता।
95 वर्षीय बुजुर्ग भगत रामकुमार बताते हैं कि एक घटना के बाद यहां के मुस्लिमों ने ईदगाह से लड़ाई का नगाड़ा बजा दिया था। अगर उस घटना को समय रहते नहीं रोका जाता तो भारी खूनखराबा हो जाता।
घटना ये थी
रामकुमार ने बताया कि लीलू नाम का मुसलमान यहां मुस्लिम समुदाय के अग्रणी लोगों में से था। आसपास के गांवों तक उसका नाम था। महम-भैणीसुरजन रास्ते पर एक बीरदास वाला तालाब होता था। इस तालाब के पास लीलू की हत्या कर दी गई थी।
लीलू की हत्या से उबल उठा था मुस्लिम समाज
लीलू की हत्या के बाद महम का मुस्लिम समाज में गुस्सा आ गया था। सतारा नाम के एक मुस्लमान ने रात को ईदगाह में जाकर नगाड़ा बजा दिया था। यह ईदगाह फिलहाल वार्ड तीन में स्थित है। यहां अब गुरुद्वारा है। ईदगाह में रात को नगाड़ा आपात स्थिति में ही बजाया जाता था। नगाड़े की आवाज सुनते ही भारी संख्या में मुसलमान ईदगाह में जमा हो गए।
इसां व उसका बेटा ईदगाह की चौखट पर लेट गए
रामकुमार भक्त बताते हैं कि लीलू की हत्या के बदले हिंदुओं की हत्या की योजना बन गई थी। इस मुद्दे को लेकर जो पंचायत हुई उसमें इंसा था। इसां ने कहा कि मुसलमानों को धैर्य से काम लेना चाहिए। हत्या के लिए सभी हिंदू जिम्मेदार नहीं हैं और ये भी क्या पता है कि लीलू की हत्या हिंदुओं ने ही की है। बिना सोचे समझे इस घटना को सांप्रदायिक रंग नहीं देना चाहिए। इस पर भी मुसलमान नहीं माने तो इसां व उसका बेटा ईदगाह की चौखट पर लेट गए। कहा कि मुस्लमान हिंदुओं की हत्या के लिए उनके ऊपर से ही गुजर कर जा सकते हैं।
वार्ड 12 में बनी है समाधि
रामकुमार भक्त ने बताया कि लीलू की समाधि महम के वार्ड 12 में खटीकान मौहल्ला के पास बनी है। लीलू को दफनाने के बाद काफी संख्या में मुस्लिम यहां से पाकिस्तान के लिए निकल पड़े थे। लीलू वाली घटना के अतिरिक्त महम में कोई कहा-सूनी तक की घटना भी नहीं हुई। पाकिस्तान जाने का यह दिल्ली की ओर का रास्ता भी था। यहां कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।
जैसा की भगत रामकुमार ने बताया
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