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गांव की सीमाएं सील करने से क्या बचा सकते हैं पशुओं को बीमारियों से? गांव की सीमा सील करने के पीछे क्या हैं वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक कारण? पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए कल होंगी भैणीचंद्रपाल की सीमाएं सील? पढ़िए 24c न्यूज की खास रिपोर्ट

गांव में बंद की तैयारियां पूरी, मंगलवार शाम पांच बजे से होगा बंद आरंभ

धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठान के रूप में पूरा करते हैं इस आयोजन को
इंदु दहिया

महम हलके के गांव भैणीचंद्रपाल की मंगलवार शाम पांच बजे से बुधवार शाम छह बजे तक सीमाएं सील रहेंगी। गांव में किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है। गांव का भी कोई व्यक्ति गांव से बाहर नहीं जा सकेगा।
प्रदेश के कई गांवों में ऐसा तब किया जाता है जब गांव के पशुओं में बीमारी आ चुकी हो या आने की संभावना हो। हालांकि कुछ गांव ऐसे भी हैं, जिनमें साल में एक बार गांव की सीमाएं सील करने की परंपरा बन गई है। इन गांवों में हर वर्ष साल में एक दिन गांव की सीमाएं सील की जाती हैं।
ग्रामीणों का विश्वास है कि ऐसा करने से उनके गांव के पशुओं में बीमारी नहीं आएगी। आ चुकी होगी तो खत्म हो जाएगी।
उत्सव की तरह होता है आयोज
गांव में यह आयोजन एक उत्सव की तरह होता है। गांव में धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है। हवनयज्ञ किए जाता है। पूरे गांव की सीमा पर रेखा खींची जाती है। प्रसाद बनाया व वितरित किया जाता है।
पूरे गांव में धूमणी दी जाती है। ग्रामीण पूरी श्रद्धा और विश्वास से इस आयोजन में भाग लेते हैं। अति आपातकाल की स्थिति के बिना ग्रामीण इस बंद को नहीं तोड़ते।

कल नहीं दिखेंगे गांव में वाहन

रिश्तेदारों को सूचित कर दिया जाता है
ग्रामीण इस बंद के बारे में अपने रिश्तेदारों को पहले ही सूचित कर देते हैं ताकि इस दिन कोई रिश्तेदार गांव में ना आए। बंद लगाने की घोषणा भी कई दिन पूर्व हो जाती है, जिससे ग्रामीण इस दिन कोई आयोजन नहीं तय करते। यहां तक कि खेतों में भी नहीं जाया जाता। पशुओं के लिए चारा-पानी की व्यवस्था पहले ही कर ली जाती है।

डा. प्रदीप

क्या कहना है पशु चिकित्कों का
पशु चिकित्सक डा. प्रदीप का कहना है कि यह गांव में एक तरह से एक दिन का पूर्ण लाॅकडाउन होता है। हालांकि बीमारी के इलाज में इसका सीधा फायदा नहीं है, लेकिन इससे विषाणु के फैलाव को रोकने में कम से कम एक दिन मदद मिलती है। पूरा गांव कम से कम 24 घंटे के लिए बाहरी स्थानों से कटा रहता है। इस दौरान गांव में किसी अन्य स्थान से विषाणु या किटाणु आने की संभावना नहीं रहती। लेकिन पशुओं के बीमार होने पर ग्रामीण पशुओं को चिकित्सक से अवश्य दिखाएं।
विषाणु जनित है मुह-खुर का रोग
डा. प्रदीप ने बताया कि मुह-खुर का रोग विषाणु जनित है। इसके फैलने के अनेक कारण है। यह हवा से भी फैलता है। एक बार यह विषाणु पशु के शरीर में प्रवेश कर जाता है तो लगभग दो-तीन दिन बाद इसके लक्षण दिखने लगते हैं।

क्या हैं मुह-खुर रोग के लक्षण
डा. प्रदीप ने बताया कि पशु के मंुह से लार आने लगती है। तेज बुखार होता है। पशु को चरने व जुगाली करने में दिक्कत आती है। खुरों पर छाले हो जाते हैं। पशु कमजोर हो जाता है। सुस्त रहने लगता है। दूध देना कम कर देता हैं।
क्या है इलाज?
डा. प्रदीप का कहना है कि मुह-खुर रोग के लिए हर वर्ष विशेष टीकाकरण अभियान चलाया जाता है। पहले पशुओं में छह महीनें बाद यह वैक्सीन लगाई जाती थी। अब नौ महीनें से एक साल बाद वैक्सीन लगाई जा रही है। जिन पशुओं को वैक्सीन लग जाती है उन्हें लगभग एक साल तक यह रोग नहीं होता। उसके बाद फिर से वैक्सीन लगवानी होती है।
इस रोग में मृत्यु दर बहुत ज्यादा नहीं है। पशु अगर पहले से स्वस्थ है तो यह रोग पांच से दस दिन में अपने आप भी ठीक हो जाता है। हालांकि रोग के लक्षण दिखते ही पशु चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए। आरंभिक स्टेज पर दवाइयां दी जाएं तो पशु शीघ्र ठीक हो जाता है। कमजोरी भी कम आती है। इंदु दहिया/24c न्यूज /8053257789

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