अभिनय को समझ लिया असली और मंच पर कर दी खलनायक की पिटाई

कहतेे हैं एक बार ईश्वरचंद्र पश्चिम बंगाल में कोई नाटक देखने गए हुए थे। नाटक में नाटक का खलनायक एक महिला चरित्र को तंग कर रहा था। नाटक का खलनायक बहुत जीवंत अभिनय कर रहा थां। वह लगातार महिला का बेहद तंग कर रहा था। सभी दर्शक नाटक का आनंद ले रहे थे। नाटक हाॅल में पूरा सन्नाटा था।
अचानक ईश्वर चंद्र उठे और मंच पर चढ़ गए। उन्होंने अपना जूता निकाला और खलनायक को दे मारा। सब हैरान हो गए। नाटक में अजीब सी स्थिति पैदा हो गई थी। खलनायक ने जूता उठाया और उसे अपने माथे पर लगा लिया।
उसने कहा कि मैं धन्य हो गया! मुझे जीवन में बहुत से पुरस्कार मिले, लेकिन इससे अच्छा पुरस्कार कभी नहंी मिला था। ईश्वर चंद्र जैसे विचारक ने मेरे अभिनय को सत्य मान लिया। वे भूल गए कि यह सत्य नहीं अभिनय है।
तभी ईश्वरचंद्र को भी लगा कि गलत हो गया। ये तो केवल एक नाटक था। यह व्यक्ति वास्तव में ऐसा नहीं कर रहा था। उसने तुरंत ऐसे हालात पैदा करने के लिए माफी मांगी और कहा कि मुझे नाटक का सीन देखकर क्रोध आ गया था।
ईश्वर चंद्र ने कहा कि उन्हें आज एक बहुत बड़ी सीख मिली है। क्रोध में व्यक्ति सत्य तथा असत्य के बीच के अंतर को भूल जाता है। इसलिए क्रोध में व्यक्ति को कोई निर्णय नही लेना चाहिए।
जब भी व्यक्ति को क्रोध आए। उसे शांति से कुछ पल व्यतीत करने चाहिए। बाद में कोई निर्णय लेना चाहिए।(ओशोप्रवचन)

आपका दिन शुभ हो!!!!!

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