1965 में दीवाली पर हुआ था श्रीराम का राजतिलक
कई पड़ावों से गुजरी है महम की रामलीला
महामारी के कारण इस वर्ष रामलीलाएं होने की संभावना कम
24c न्यूज, रामलीला विशेष
कार्तिक महीना सुहावना तथा ऊर्जादायक होता है। भारतीय परंपरा में विशेषकर उत्तर भारत में यह महीनां श्रीराम को समर्पित होता है। कस्बों, शहरों में इन दिनों रामलीला की चर्चा रहती है। महम की रामलीलाएं भी चर्चित और प्रसिद्ध रही हैं। 24c आज आपकों महम की रामलीला के मुख्य पड़ावों से अवगत कराने का प्रयास कर रहा है।
ऐतिहासिक है महम की रामलीला
महम में रामलीला का इतिहास आज़ादी से पहले भी पहले का है। तुलसीदास लिखित रामचरितमानस को चौपाइयों का दशहरे से पूर्व गायन होता था। बीच-बीच में नाट्य भी किया जाता था। महम के प्रसिद्ध व प्राचीन खांड की मंडी मंदिर में यह आयोजन होता था। पंडित खुशी राम शर्मा इस रामलीला के मुख्य सूत्रधार थे। आजादी के बाद भी यह आयोजन होता रहा।
दीवाली पर हुआ था राजतिलक
1965 में अप्रैल से सितंबर तक भारत-चीन युद्ध चल रहा था। दशहरे से पहले रामलीला करना संभव नहीं हो पाया। उस साल बाद में रामलीला की गई। राजतिलक दीवाली के दिन हुआ था। यह रामलीला शीतलपुरी मंदिर के पास मैदान में हुई थी। अब यहां पूर्व प्राचार्य सहीराम का मकान है।
आदर्श रामलीला ने देखे कई पड़ाव
1963 में आदर्श रामलीला के लेखक भक्तरामकुमार जी द्वारा लिखित आदर्श नाट्य रामलीला का मंचन शुरु किया गया था। इस रामलीला की प्रबंधन कमेटी का नाम भी आदर्श रामलीला ही था। गोकुल चंद पटवारी इसके पहले अध्यक्ष थे। जबकि सेठ देवत राम सिंगला कोषाध्यक्ष थे। हरभगवान धवन ने इस रामलीला का निर्देशन किया था। हरभगवान धवन अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं। उन्होंने 24c न्यूज को बताया था कि यह रामलीला शुरु करने के लिए बहुत अधिक परिश्रम किया गया था। 1969 से गीताभवन मंदिर के पीछे वाले मैदान में रामलीला का मंचन का शुरु हुआ। पक्की स्टेज बनाई गई जो आज भी खंडहर हालात में है। गीताभवन मंदिर परिसर में 1982 तक रामलीला हई। बाद में यह रामलीला चार साल तक खानगाह मंदिर के पास वाले मैदान में हुई। अब यहां स्कूल की इमारत बन चुकी है।
प्रसिद्ध है पंचायती रामलीला भी
पंचायती रामलीला भी महम की प्रसिद्ध रामलीला है। इस रामलीला में लंबे समय तक भूमिका निभा चुके रामअवतार वर्मा ने बताया कि यह रामलीला उन्नीस सौ सत्तर में शुरु हुई थी। तब से अब तक ज्यादातर बार होती रही है। महम में दो हजार 12 से दो हजार सत्रह तक सभी रामलीलाएं बंद रही थी। मेन बाजार में इस रामलीला का मैंदान है। रामअवतार वर्मा ने बताया कि शुरुआत में रामलीला गैस लैंपों की रोशनी में होती थी। फिर स्टेज पर लाइट आ गई। बाद में पूरे मैदान के लिए बिजली आने लगी।
1983 में शुरु हुई सनातन धर्म रामलीला
पूर्व पार्षद जगत सिंह काला ने बताया कि महम में 1983 में सनातन धर्म रामलीला शुरु हुई। चंद्रभान कश्यप इस रामलीला के पहले प्रधान थे। उसके बाद जगत काला ने इस रामलीला का पहले साल मंच संचालन किया था। प्रेम सेवा समिति के बैनर तले भी महम में रामलीला हुई है।
मूर्ख मंडल के नाम से बनी रामलीला की संस्था
मजेदार बात है कि महम में लंबे समय तक एक रामलीला का मंचन मूर्ख मंडल के नाम से हुआ। पंडित जगन्नाथ इसके निदेशक थे। पंडित स्वयं गीत व संवाद लिखते थे। पाकिस्तान में ये रामलीला का निर्देशन करते थे। अशोक खुराना ने बताया कि मुर्ख मंडल रामलीला को आरंभ करने वालों में बाबा नंदलाल कटारिया, जगन्नाथ बतरा, दीनदयाल बतरा, डाक्टर भगवान दास, मोतीलाल रेल्हन आदि मुख्य रूप से शामिल थे। बाद में मुर्ख मंडल का नाम पंजाबी रामा क्लब रख लिया गया और यहां मंचन की बजाय कथा होने लगी। 1982 के आसपास यह रामलीला बंद हो गई। वर्तमान बड़े गुरुद्वारे के पूर्व की ओर उस समय खाली मैदान था। शुरुआत में कुछ साल यहां भी रामलीला हुई। अब यहां बस्ती बस चुकी है।
मांगते थे मन्नतें
रामलीलाओं के प्रति श्रद्धा भाव इस स्तर का था कि लोग रामलीलाओं में मन्नते मांगते थे। मन्नते पूरी होने पर खूब दान देते थे। कलाकारों को सोने चांदी के मैडल इनाम में दिए जाते थे। बेशक इस वर्ष रामलीला का होना संभव नहीं हो, लेकिन इन दिनों रामलीला की चर्चा खूब है।
इंदु दहिया/24c न्यूज/8053257789
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