गरीबों और साधुओं की सेवा निष्फल नहीं जाती
एक लकड़हारे को कठोर परिश्रम के बावजूद आधा पेट भोजन ही मिल पाता था।
एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला।
लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- “प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे के भाग्य में पूरे जीवन के लिए कम आनाज है। उसे पूरे जीवन अनाज मिलता रहे और वह जीवित रह सके, इसलिए उसे कम अनाज दिया जा रहा है।”
समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा, “ऋषिवर…!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम कुछ दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।”
अगले दिन लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया।
लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं।
उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।
लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया।
यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।
कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा—“ऋषिवर ! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।”
साधु ने समझाया, “तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया।
इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।”
अतः गरीबों और साधुओं की सेवा में दान करने वालों का भंडारा हमेशा भरा रहता है।
आपका दिन शुभ हो!!!!!
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