स्वतंत्रता सेनानी ऐंशीलाल छाबड़ा (फाइल फोटो)

हड्डियां दिखने तक नोच लिया था मांस, फिर भी नहीं झूके थे ऐंशीलाल छाबड़ा

नमक और चाट तक बेचना पड़ा था आजादी के इस योद्धा को
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महम

भारत की आजादी के किस्से धीरे-धीेरे इतिहास बनने लगे हैं। आजादी के परवानों की कथाएं भूली हुई कहानियां होने लगी हैं। आजादी के जश्न की औपचारिकता, राष्ट्र के वर्तमान स्वरूप का महिमा मंडन भर हो कर रह गई है। आजादी को पाने के लिए संघर्ष की अतुलनीय, अकल्पनीय, डरावनी भी, रोमाचिंत करने वाली भी, गौरवमयी भी और हिम्मत और हौंसलों की कहानियों से मोबाइल और इंटरनेट से चिपकी नई पीढ़ी अनजान है। 24c न्यूज वर्तमान पीढ़ी के लिए आज एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी की कहानी लेकर आ आया है, जिसे पढ़कर आप हैरान, रोमांचित और गौरवान्वित हो जाएंगे। हम लिखते हुए धन्य हुए हैं।
जी हां! एक स्वतंत्रता सेनानी जिसने संकल्प लिया था कि वह तब तक विवाह ही नहीं करेगा जब तक देश आजाद नहीं हो जाएगा। असहनीय यातनाएं सही।
गौरी सरकार के सिपाहियों के हाथ कांप जाते थे, लेकिन इस महान योद्धा का शरीर जुल्मों के समक्ष तनकर खड़ा रहता था। महम शहर की धरा धन्य है कि आजादी के बाद यह महान स्वतंत्रता सेनानी यहीं आकर बसा।
इस ंस्वतंत्रता सेनानी का नाम है ऐंशीलाल छाबड़ा। वर्तमान पाकिस्तान के जिला मुलतान के तुलंबा गांव में जन्में ऐंशीलाल अपने आधे परिवार से बिछुड़कर महम आ गए। यहीं उन्होंने 45 साल की उम्र में 1949 में चरण देवी से विवाह किया और जीवन पर्यन्त यही रहें। देश की आजादी के बाद ही दुल्हनियां लाए।
वस्त्रों में छूपा कर ले गए तिरंगा, नेता जी ने दी अंगूठी
ऐंशीलाल के पुत्र भगत राम ने बताया कि एक बार तुलंबा में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सभा थी। सरकार ने धारा 144 लगा दी थी। इसके बावजूद अपने वस्त्रों में तिरंगा छिपाकर ऐंशीलाल सभा स्थल तक पहुंच गए थे। तब नेता जी ने उन्हें अपनी अंगूठी उतार कर दी थी और कहा था कि ऐसे ही नौजवानों के संघर्ष से देश एक दिन अवश्य आजाद होगा। भगत राम कहते हैं कि बंटवारे के समय यहां आते हुए यह अंगूठी कहीं खो गई।
प्रताप सिंह कैरों ने पहचान लिया था महम में
महम के अन्य महान स्वतंत्रता सेनानी बद्रीप्रसाद काला के पुत्र जगत सिंह काला ने बताया कि तात्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो एक बार महम आए थे। उस समय हरियाणा पंजाब से अलग नहंी हुआ था। कैरो ने महम में आते ही ऐंशीलाल को पहचान लिया था और गले लगा लिया था। दरअसल एक बार आजादी के आंदोलन के दौरान कैरों, ऐशीलाल और बद्रीप्रसाद काला एक साथ मुलतान जेल में बंद थे। कैरो के सिर मंे भयंकर दर्द हो गया था। तब ऐंशीलाल जेल में पड़ी जानवरों की बीट कैरों को सुंघा कर उनके सिर का दर्द ठीक कर दिया था।
निर्वस्त्र करके लटका दिया था पेड़ पर
भगत राम ने बताया कि एक बार ऐंशीलाल लाहौर जेल में बंद थे। यहां एक बीमार स्वतंत्रता सेनानी से चक्की पिसवाई जा रही थी। ऐंशीलाल क्रोधित हो गए। उन्होंने उस चक्की को ही तोड़ दिया। सजा के तौर ऐंशीलाल को निर्वस्त्र करके पेड़ पर लटका दिया था। उन्हें इतनी बैंते मारी थी कि उनके शरीर का मांस निकल गया था, हड्डियां दिखाई देने लगी थी। इसके बाद उन्हें लाहौर से मुलतान जेल भेज दिया गया था।
गाते और लिखते थे आजादी के गीत
ऐंशीलाल आजादी के गीतों को गाते भी और लिखते भी थे। अपने भाषण के शुरुआत अपनी ही एक नज्म से करते थे। भगतराम छाबड़ा के पास यह नज्म अभी भी सुरक्षित है। उनके परिवार के लोगों को याद है। 24c न्यूज किसी दिन इस नज्म को अपने पाठकों के साथ अवश्य सांझा करेंगा।
नमक और चाट तक बेचा
आज हम ऐंशीलाल की गौरव गाथा लिख रहे हैं। आप पढ़ रहे हैं। लेकिन आपकों बता दें तक कि आजादी के बाद दुलहनियां लाने का संकल्प लेने वाले इस योद्धा ने आजादी के बाद अत्यंत गरीबी मंे दिन काटे। उनके पुत्र भगत राम ने बताया कि एक समय तो उनके घर में आटा तक नहंी होता था। ऐंशीलाल ने नमक व चाट बेचा। कोई नहीं जानता था कि यह आजादी के लिए अनेकांे कष्ट सहकर आया है। आखिर 1972 में तात्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र से विभूषित किया तो यहां लोगों को पता चला कि यह आजादी का योद्धा है। तब उन्हें हिसार के बीहड़ में 12 एकड़ भूमि भी दी गई।
नाम पर था पुस्तकालय
ऐंशीलाल के नाम पर महम में एक पुस्तकालय भी स्थापित किया गया था। आजकल यह पुस्तकालय बंद है। 19 जून 1985 को यह महान स्वतंत्रता सेनानी संसार को अलविदा कह गया।

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